हिंदी साहित्य का सच्च

*हिंदी साहित्य का सच*
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हिंदी साहित्य को मैनें जैसा देखा और पाया है:--
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         जब भी कोई कहीं भी कुछ गद्य या पद्य में लिखता है और उसको पाठक   पढ़ता है। उसके लिखे से ही वह  उसकी बुद्धिमता को  (लेखक के) उसके ज्ञान को उसके साहित्यिक अनुशासन को देखकर बड़े ही आदर के साथ उस लेखन को स्वीकार कर लिया जाता जाता है । समकालीन परिदृश्य पर लिखना या कुछ भी कहना सबसे मुश्किल कार्य होता है और उन विषयों पर व्याख्यान देना हो  तो कलमकार को आलोचक, इतिहास का राजनीति का अर्थ  ,समाज के विभिन्न विषयों का  ज्ञान होना बहुत परम आवश्यक होता है ।साहित्य केवल व्याख्या का क्षेत्र हो  नहीं हो नहीं सकता ।यहां सिर्फ हम अपनी पसंद ना पसंद की रचनाओं को उत्कृष्ट की रचनाओं को उत्कृष्ट और रद्दी बता दिया और कार्य खत्म ।  असल में यहां (साहित्य समाज में) रचनाओं का सही- सही सटीक विश्लेषण समय और समाज के व्यापक प्रदर्शन में रखकर रखकर ही संभव हो पाता है।
          छायावाद को जिस तरह उस काल में  जाने कौन से  परिभाषा में उलझाया जा रहा था ।वह अब भी चल रहा है।विचारणीय यह है कि किस पक्ष को सही माने। छंद विहीन रचनाओं को कुछ कलमकार कविता या साहित्य ही नहीं मानते। जबकि आज के समय में 70% कविताएं मुक्त छंद  या अतुकांत में लिखीं जा रहीं हैं। पहले भी इसी तरह कहकर  कलमकारों को उलझाया  गया था ।अब भी छायावाद में यही दिखाया बताया जा रहा है।  छायावाद राष्ट्रीय जागरण की काव्यात्मक अभिव्यक्ति है जो कि एक पुरानी पीढ़ियों  से मुक्ति पाना चाहता था और दूसरी ओर विदेशी पराधीनता से कई लिखी पुस्तक पुस्तक को भी साहित्य में लिखे का स्थान नहीं मिल पा रहा है।     
                  आज लेखक बनते ही  साहित्य प्रमाण पत्र पाने की लालसा नहीं है ? तो क्या है?  क्या चल रहा है। हमारे समय के नए पुराने लगातार सब जगह इन्हीं सब बातों पर विचार विमर्श  /आलोचक  चलती रहती है और इनकी  विश्वसनियता पर कुछ कमलकारों द्वारा हमेशा सवाल खड़े किए जाते रहे हैं।
          जब आप गंभीर लेखन करने लगते हैं। तो आपके व्याख्यान में कई क्रांतिकारी विचार अपने आप आ जाते  हैं और विचारों पर मंथन आपके अंदर स्वतः प्रारंभ हो जाता है ।
             इतिहास से संबंधित भारतीय परंपरा से संबंधित कोई महत्वपूर्ण विषय सम्मिलित हो ही जाती है ।आवश्यकता इस बात की है समाज को आपको जानना ही होगा समाज का शिक्षक कलमकार को बनना ही होगा।लिखता कोई है और उस लिखे हुए को संपादित कोई और करता है ।कुछ लिखे हुए पर विचार-विमर्श समस्त कलमकार पर विचार-विमर्श समस्त समूह मिलकर करता है और इन्हीं सब के बीच से निकल कर जब रचनाकार का लिखा हुआ सर्वमान्य होकर सबके सबके सामने आता है। तो वह लेखन नवजागरण की चेतना को आगे बढ़ाता है। आप जो कुछ लिख रहे हैं और सब कुछ साहित्यिक कृतियों में शुमार पाएगा यह अत्यावश्यक नहीं है,सम्भव भी नहीं है। 
            आपका लिखा साहित्यकारों और साहित्यिक प्रवृत्तियों के विश्लेषक द्वारा विश्लेषित  होगा यह भी कतई कतई आवश्यक नहीं है।आवश्यक यह है कि  समाज को अंधेरे  के खिलाफ रोशनी के दिए  आप जैसे कलमकारों को ही दिखाना होता है । वहीं कलमकार संचेतना विधि से समाज में नई दुनिया में समानता सपनों के साथ प्रवेश दिलाने का कार्य करता है।
                    आलोचना और लेखन लेखन के साथ -साथ एक और और पक्ष की तरफ सभी का ध्यान आकर्षित होता है वह है आपके लेखन का मौलिक अवदान । लेखन  जगत में प्रत्येक लेखक को अपने क्षेत्र में एक अघोषित साहित्यिक लड़ाई खुद ही  लड़नी पड़ती है। 
         हिंदी साहित्य में खुद को बरकरार रहने के लिए सैकड़ों पापड़ बेलने होते हैं ।आप का लिखा हुआ किसी के सामने ही  ना आ पाए या ऐसा हो जाए इसके लिए इतना समय और समाज में आपको देना ही होगा।
               आपकी लिखे पर खुलकर चर्चा हो पाठकों की जो जिज्ञासा आए हैं ।उसको आप शांत कर पाए ।हिंदी साहित्य के शिखर व्यक्तित्व को यूं ही  ही यह सब  प्राप्त नहीं होता है ।      
         आपकी लेखन दृष्टि ,आप की असाधारण ऊर्जा  आपकी अपनी प्रस्तावना वाजिब योगदान आप की लोकप्रियता आपको प्रखर और प्रज्ञा बनाएगी।साहित्यिक नेतृत्व ही जो करता है उसे साहित्य उसका लेखन  शिखर तक पहुंचाता है।  तभी जाकर आपका नाम चुनिंदा लेखकों  में शुमार पाएगा।जिनको खूब पढ़ा जाता है ,जिनको बहुत सुना जाता है जिनके लिखे  को समझा जाता है और जिन पर वाद- विवाद भी होता है ।जिनके लिखे को पढ़कर उनको समाज में सबके सामने प्रशंसा की जाती है ।यह संवाद  किसी भी भाषा के लिए नजीर की तरह होती है।
              लेखन में उतरने के बाद किसी भी लेखक को कहीं भी अपनी बात जनतांत्रिक संवेदना जगाने के लिए करना पड़े। तो उसे हमेशा तत्पर रहना चाहिए। चाहे वह मजदूरों की सभाओं के मध्य हो, नौजवानों के विद्यार्थियों के बुद्धिजीवियों की सभा हो या  विद्वानों के सभा। कहीं भी अगर आप आमंत्रित किया जाता है तो आप अगर वहाँ जा पाते हैं ।तो आपको भी खुशी भी खुशी मिलेगी। जो सुनता है उसे भी  खुशी होती है ।साहित्य संघर्षों की रोशनी में  ही जाकर कलमकार  पुष्पित और पल्लवित होता है। समाज में इतनी सारे मुद्दे हैं।रूढ़िवादिता,जड़ता,  अंधविश्वास, कला, वाद-व्यक्तिवाद ,वाद विवाद वगैरा-वगैरा इतने सारे मुद्दे हैं कि जिनके खिलाफ चिंतन के रूप में आप अपनी कलम चला सकते हैं/सकतीं हैं।
           मुद्दों की कोई कमी नहीं है और जड़ हीनता के विरुद्ध खड़े होने के लिए जब बारी आती है तो बहुत लोग इससे कन्नी  काट जाते हैं ।वैकल्पिक विचारधारा के लोग भी अगर आपके अपने जीवन का अनिवार्य हिस्सा है। यह सब  आपके लिए आपके लेखन के लिए फायदेमंद होगा। 
        आप आगे बढ़ते चले जाते हैं उसमें आपका नाम होता चला जाता है।
        आमजन  के लोगों के प्रति अगर आपके मन में गहरी संवेदना है तो आप जो कुछ लिखेंगे उसे यह समाज हो सकता है। मार्क्सवाद की तरफ झुका हुआ आपको मान ले ।लेकिन आप पर किसी वाद का इतना प्रभाव ना पड़े कि लोग आपको उस विचारधारा का मानने लगे। क्योंकि लेखक अपने लेखन में किसी विचारधारा से बंध  कर नहीं रह सकता ।
               आत्मा लोचना को भी स्वीकार करते रहना चाहिए और आपकी यह सब खूबी आपकी व्याख्यान, लेखन और आपके द्वारा दिए गए भाषण में  नजर आएगी ।बहुत सारे रचनाकार कलमकार वक्ताओं में शुमार नहीं पाते। क्योंकि जब कुछ बोलने की बारी समाज में आती है तो बहुतों की बोलती बंद हो जाती है ।कभी ज्ञानियों के बीच बोलने की बात आती है तो हिम्मत नहीं जुटा पाते। जब कहीं मंच पर कोई बुलाता है तो वहां बैठे भीड़ को देख कर भी बहुत लोग कुछ नहीं कर कर पाते ।एक बार जब अंदर  का डर निकल जाता है। तो वाणी को एक ऊर्जा प्राप्त होती है ।वह आभा दर्शनीय होती है ।जब एक व्याख्यान में कोई व्यक्ति धाराप्रवाह अपनी बात रखता है कथ्य की गहराई और गहन अध्ययन के साथ अपने विचारों को ले के साथ साथ प्रकट करता है। तो वहाँ उपस्थित सभी आपका उत्साहवर्धन करते है। यह होना भी चाहिए तथा वह पाठकों का  भी   हमेशा ध्यान में रखता है। साहित्य की भाषा में जो नव सृजनशीलता आती है। वह लोक भाषा से आती है और आपकी लोक भाषा की लेखनी में  यह सब व्याप्त रहते हैं ।लोक भाषा सृजनशील होती है और इस सृजनशीलता का इस्तेमाल कोई अपने गद्य और पद्य किसी भी तरह  से कर सकते हैं ।आप जो कुछ लिख रहे हैं उस पर सहमति --असहमति बनती रहती है और आपके लिखे पर विचार-विमर्श भी होता रहता है ।लेकिन अधिकतर यह  देखने में आता है कि जैसे असहमति बनी कलमकार विचलित हो जाता है। यह नहीं होना चाहिए जो भी व्यक्ति  आत्मा लोचन की रचनात्मकता की निर्भरता निर्भरता से सब कुछ अभिव्यक्त कर पाता है ।वह दूसरों की आलोचना को भी स्वीकार करने का साहित्यिक वीरता का परिचय देता है। जो उसी के फायदे में बात जाती है ।अपनी आलोचना को स्वीकार करने में ही कलमकार का लाभ है। जब आपके कहे पर आपके लिखे पर कुछ बात होगी ।तभी वह बात दूर तक जाएगी और अगर कुछ ऐसा विशेष हुआ तो आप की विशेषता विशेषता  की एक अलग परंपरा में इतिहास में आपकी पहचान बनेगी। आप हमेशा वैचारिक संघर्ष की जोद्धा बने किसी भी मोर्चे से कोई पुकार उठे  आपको वहां हरदम पहुँचना ही है।  यही जरूरत है । आप तत्परता से वहां पहुंचे और अपने कलम अपने विचार ,अपने भाव ,अपने शब्द के जरिए भारतवर्ष की सांस्कृतिक और वैचारिक दृष्टि सांस्कृतिक और वैचारिक दृष्टि बनाइए और विकसित वाचिक परंपरा का निर्वाह करते हुए अपनी बात रखें ।
              साहित्यिक कद बहुत सारे पुस्तक छपने से नहीं माने जा सकते।शब्द लिखना जान लेने से से नहीं होता। साहित्य कद उसका बड़ा होता है जिसके लिखे को दुनिया पढ़ती आई हो। साहित्यिक कद उसका बड़ा होता है जो जितना बड़ा है ,उतना वो नरम दिल दिखाई पड़े।
            जिसे  बोलने की कला नहीं आती इसे निरंतर अभ्यास की जरूरत होती है ।छोटे-छोटे गोष्ठियों से यह बात प्रारंभ होती और फिर कवि सम्मेलन तक बात चली जाती है ।अगर किसी छोटी गोष्टी के समाप्ति के बाद आप किसी आयोजन समिति द्वारा किसी बड़े गोष्ठी या बड़े साहित्य सम्मेलन में बुलावा मिलता हैं ।तो आपको इसमें खुशी मिलती है।यह अच्छी बात है पर इस बात का ढिंढोरा पीटते हैं तो यह बात साहित्य समाज स्वीकार नहीं कर पाता। आपके लेखन की अथक मेहनत संघर्ष हिंदी को एक नया प्रतिमान देने की दिशा में एक बड़ा कदम होगा। यह सब आप की साहित्यिक साहित्यिक धरोहर कहलाएगा।आपने साहित्य जगत में कितना अध्ययन किया है यह आपके लेखन से कोई भी जान जाता है।
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सुधीर सिंह सुधाकर 
राष्ट्रीय संयोजक 
मंजिल  ग्रुप साहित्यिक मंच 
दिल्ली
७७०३८०२१२१
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