उम्मीदों के दीपक
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
उम्मीदों के दीप जलाये बैठे हैं ।
गहन तिमिर में प्रीत निभाये बैठे हैं ।।
गैरों से क्या आस करें अपनेपन की ।
अपनों से ही यहाँ सताये बैठे हैं ।।
जिसको अपना समझा उससे घात मिली ।
फिर भी उसको गले लगाये बैठे हैं ।।
जो होगा , हो जाएगा , हो जाने दो ।
खुद को हम बस ये समझाये बैठे हैं ।।
दुनिया में रिश्ते "निश्छल" कब होते हैं ।
गठरी में सब स्वार्थ दबाये बैठे हैं ।।
रचनाकार - नवीन गौतम
नयागाँव - कोटा - राजस्थान
मो.नं. - 9057558170
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
ऐसे ही सभी विधायों का निःशुल्क प्रकाशन करने के लिए हमे मेल करmarotigangasagare2017@gmail.com
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
टिप्पणियाँ