उम्मीदों के दीपक


ग़ज़ल - उम्मीदों के दीप....

उम्मीदों के दीप जलाये बैठे हैं ।
गहन तिमिर में प्रीत निभाये बैठे हैं ।।

गैरों से क्या आस करें अपनेपन की ।
अपनों से ही यहाँ सताये बैठे हैं ।।

जिसको अपना समझा उससे घात मिली ।
फिर भी उसको गले लगाये बैठे हैं ।।

जो होगा , हो जाएगा , हो जाने दो ।
खुद को हम बस ये समझाये बैठे हैं ।।

दुनिया में रिश्ते "निश्छल" कब होते हैं ।
गठरी में सब स्वार्थ दबाये बैठे हैं ।।
रचनाकार - नवीन गौतम
नयागाँव - कोटा - राजस्थान
मो.नं. - 9057558170
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