कविता पुष्प

शीर्षक  पुष्प

 मरुस्थलीय भूमि में भी खिल रहे हैं हम,
कंटको से नित गले भी मिल रहे हैं हम।
व्यक्त नहीं करते हैं निज हृदय की पीर,
अधरों को मुस्कान के धागे से सिल रहे हैं हम।

कभी ईश्वर के चरणों में अर्पित हो जाते हैं,
कभी प्रेयसी के बालों की शोभा बढ़ाते हैं।
पुष्पों का महत्व  आँकना होता है कठिन ,
कभी जीवन की अंतिम यात्रा में साथ निभाते हैं,

भाँति-भाँति के रंगों के हम पुष्प हैं  कोमल,
ग्रीष्म, शिशिर, शीत सहर्ष  सह रहे हैं हम,
दुःख की आँधियों से किंचित भय हमें नहीं,
मुख पर मुस्कान धरकर रह रहे हैं हम।

बेला, चमेली,चंपा,जूही,सूर्यमुखी हम हैं,
नारी का गजरा सुगंधित, चंद्रमुखी हम हैं।
प्रतिकूल मौसम में भी मुस्कुरा रहे हैं हम,
आशा का संगीत मधुरिम गा रहे हैं हम।
प्रीति चौधरी "मनोरमा"
जनपद बुलन्दशहर
उत्तरप्रदेश
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