सफर ऐ जिंदगी
सफर ऐ जिंदगी
लोग पता नही क्यों जल जाते हैं
मेरी मुस्कान पर, क्यों कि...
जिंदगी से जो भी मिला उसे कबूल किया मैंने
कभी किसी चीज की फरमाइश नही कि...
मुश्किल होता हैं यह सब
मगर समझ पाना हैं मुझें क्यों कि...
जीने के अलग हैं अंदाज मेरे
जब जहाँ जो मिला, उसे अपनाया हैं मैंने
जो ना मिला उसकी ख़याईश नही की मैंने...
माना कि ओरो के मुकाबले में
कुछ ज्यादा पाया नही मैंने
जो भी था उसमें खुश थी मैं
कभी खुद को गिराकर
कुछ उठाया नही मैंने...
जो था उसमें संतुष्ट हूँ मै
स्वाभिमान से जीना सीखा हैं मैंने...
जो हाथों के लकीरों में था
वही तकदीर से पाया हैं मैंने...
सुगंधा राजूलाल चाबुसवार
नांदेड़ महाराष्ट्र
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