मैं इंसान हूँ


हँसता हूँ मगर हँसाता नही मैं
क्यों कि इंसान हूँ मैं
गुदगुदाने वाले तो ज्यादा 
शब्द लिखता नही मैं
मगर पाठक का दिल खुश कर सकता हूँ मैं
       कहि कहि पर दिल के भाव
       यूँही लिख डालता हूँ मैं
       आदमी महफ़िल मैं गुमसुम और
       अकेले में हँसता हैं ...
       ऐसे कुछ कुछ शब्द लिखता हूँ मैं
मुख खोलकर हँसने की कला मुझे आती नही
ओटो पर  स्मित हास्य ला सकता हूँ मैं
कही गंभीर तो कहि अधिक गंभीरता दिखाई देगी
मगर इंसान को इंसानियत दिखा सकता हूँ मैं
 
कवि मारोती गंगासागरे

       

टिप्पणियाँ

Dr.Manoj Rastogi ने कहा…
सुंदर
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