अहंकार

कहने को तो लोग कहते हैं अहंकार आदमी का विनाश कर देता है ! 
मगर यहाँ जिस किसी को देखो अहंकार में ही दिखाई पड़ता है !! 
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अहंकारी रावण का पुतला दहन होता है हर वर्ष लेकिन ! 
आदमी सबक लेने को तैयार ही नहीं किसी क़ीमत पर !! 
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यहां आदमी आदमी के रिश्तो में प्रगाढ़ता आए कैसे ! 
अहंकार अपना सिर उठाए दोनों के बीच खड़ा मिलता है !! 
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बहुत आसानी से आदमी के अंदर अहंकार आता है ! 
यह अलग बात है  इसको मिटने में बहुत देर लगती है !! 
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भाईचारा का रोना रोने से भला नहीं होगा समाज का ! 
चाहते हो कुछ अच्छा तो अहंकार को देखो जहां मार डालो !! 
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आदमी की मुसीबतों में अहंकार शामिल है ! 
भला होगा दुनिया का जो अहंकार घायल हो !! 
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अहंकार हक़ीक़त की दुनिया को देखने ही नहीं देता ! 
इंसानियत का बसेरा आदमी के अंदर हो भी कैसे !! 
************* तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश !
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