कितने दिनों कें बाद...

लेखक मारोती गंगासागरे

काफी दिनों से कुछ अलग सा महेसुस हो रहॉ था | दिन को चैन और रात में सुकून से भरी निंद का स्वाद कितने दिनो से मिल ही नही पाया, धुंडने की कोशिष की पर कुछ हासील नही हुऑ | फिर मैं सोच मे डुब गई की ऐसा क्यों हो रहॉ है | पुरा एक दिन सोच - सोचकर बितायॉ मेरा चैन सुकून मिल जाऐ यही एक आशा से फिर भी कुछ हालात सुधरे नही, दिनों - दिन स्थिती और मेरी समस्या बढती गई | क्या करँ ? कुछ भी नही पता ऐसा क्यो हो रहॉ | इन सारी परेशानियों से पढाई पर पानी बहने लगा, मैं तंग होकर खुद से ही कहने लगी, " अखिर वजा क्या है ? हाल निकालनेसे नही
निकलता ऐसा क्यो..." परेशान होकर रोने लगी, और जबरदस्ती सें सो गई|
          एक दिन इतना टेंशन बढ गया की मैंने मेरी सारी परेशानी सहेली को
बताई, ओं भी सुनकर जरा सा हँसकर कहने लगी ," इसमे मैं क्या करुँ... खुद ही सोचले | " मैने काफी सोच कर इसे मेरा हाल बतायॉ मगर इसने भी
मुझें ही... अचानक सहेली गिडगिडाते स्वर मे बोली , " ऐ सुन तुझे जो लडका बात करता था , क्या ओ सिलसीला शुरू है |"
   उसका यह वाक्य सुनकर माथे पर पसिना आगया और पसिना पोचते हुऐ घबराऐं स्वर मे मैने कहॉ " उसकी तरफ से हॉ थी ,मैंने ही उसे इंन्कार किया
पता नही अब कहॉ होगा... अच्छा होगा मुझे मेरी परेशानी का हाल बताना छोडकर उस पागल की याद क्यों दिलाई "
  "हॉ पागल था ओ और तू होशियार..., मेरी मॉ सुन तू उसे अभी फोन करके बात कर तेरा हाल निकल जाऐगा... तू फिरसे हँसने लगेगी , झुट लगता है ,मेरा गुस्सा आ रहॉ है , तो देखलो आदमाकर हॉ...हॉ हॉ सच्च
कहती हूँ... | "
     इतना सुनाकर मुझपर हँसकर चली गई... फिर क्या मेरी मजबुरी मेरे साथ थी | सोचकर परेशान अब तो भोजन करनेका भी ध्यान नही आया
यह मुझे रात का आंधेरा देखकर याद आया, किसीके कहनेपर जबरदस्ती से भोजन कियॉ और सोने चली गई , निंद भी नही आरही थी | सोचते - सोचते एकदम कुछ गिरने की आवाज मेरे कानो तक आयी और सहेली के
शब्द भी, मैने सोचकर सहेली की बातो का अध्यन करके , और मेरी परेशानी का हाल निकालने के लिए उस लडके को कॉल किया नंबर मेरे मोबाईल मे नही था आधा घंटा धुडने के बाद मिल गया मैने तुंरद कॉल किया आवाज आयी , हँलो... हॉ बोलो कैसी हो तूम... तुम बोलती क्यो नही हँलो..." उसकी यह बाते सुनकर न जानें क्यो उसकी आवाज मे मुझे
कुछ अपना पन नजर आया और  ऑखों से ऑसू झलक पडे़  बोलने की इच्छा होकर भी मैने शब्द हिनता से फोन रख दियॉ |
       उसकी यह बाते सुनकर कुछ अच्छा लगा क्यो कि उसके मन मेंअभी
प्रेम की जॉला वैसी ही तेज है, यह उसके  शब्दों से और आवाज से समझ
आया था | सोचने लगी की ओ मुझे कॉल करता था , मैभी बाते करती रही
पर बाद मे मै भी उसकी कॉल का इंन्तजार करती थी | तो कभी खुद कॉल करती रही फिर मैने मेरी ओरसे इंन्कार कर दियॉ , ओ जब भी मुझे बाते करता था की कही मैं नाराज ना हो जाऊँ ,यह बात हमेशा सामने रखकर
संवाद आगे बढाता था , मुह हर पल हँसता हुऑ देखना चाहता था  ,मगर
मैने कभी उसकी बातो पर विचार नही कियॉ, मैने उसका कॉल बहूत बार काट दिया पर उसने कभी मूझें डाटा नही, कभी पुच्छा नही कि तुम तुम ऐसा क्यो कर रही हों , मुझे याद है कि एकबार मैने ही उसे टाटा था मगर
उसने मुझपर गुस्सा निकाल ने की बजाऐ समझायॉ  | मै उसे पागल समझ ती गयी और ओ मुझे प्रतिभा संपन्न और अच्छी समझ ता था,  ओ मेरी तारीफ करता था ,हाल चाल पुछता था, मगर मैने कभी उसे हाल- चाल तो छोडो भोजन कियॉ क्या यह भी नही पुच्छा , ओ मुझे निस्वार्थ भाव से प्यार करता रहॉ ,पर मैने स्वार्थ के लिए भी और दिखावे कें लिए भी प्यार भरी नजर से नही देखा, फिर भी मैं सुधर जाऊँगी यही आशा रखकर ओ मुझे देखता रहॉ |
       न आज कितने  दिनो के बाद आज उसकी बाते सुनकर मै इतना सब कुछ सोचने लगी , उसके दृष्टी से मुझे तब सोचना था पर मै अब...रात काफी हो चूकी थी, उसको कॉल करना इस समय उचित नही होगा यह
सोचकर   मैं सो गयी  और दूसरे दिन मैनें खुद होकर उसे कॉल कियॉ
मैंने कहॉ , "हँलो... मैं... मै बोल रही हूँ मैं श्रध्दा बोल रही हूँ , कैसे हो...भोजन किया क्या ? " मेरी सारी परेशानीयॉ दूर हो गयी थी | सहेली बाते सच्च निकली, तभी उसने अश्चर्य भरे स्वर मै कहॉ "क्या...हॉ... बोलो हमारी जैसे बेशर्म लोगो को आपने याद क्यो क्या ?" मुझे यह वाक्य सुनकर
खूशी हुई कि उसने पहली बार मुझे अपमानित किया था और पहली बार उसने... "ऐसे ही मैतुमसे बात करना चाहती हूँ , क्या तुम्हारे पास समय है ,"
"अरे यह क्या पुछने की बात है, तुम्हारे लिए कभी समय है क्या है कहों "
कुछ नही मिलकर बतऐंगे कल आजाना ,रखती हूँ |
        इससे पहले उसने मुझे मिलनेका आमंञण बहूत बार दियॉ था पर साफ इंन्कार किया था ,अब देखो मैने एक बार कहॉ और ओ मान गया ,
इसके साथ मेरी सारी उदासी निराश भावना बह गयी और मैने सोच
लियॉ है कि उस मिलकर मै कहूँगी ," सॉरी जो हुऑ भुल जाओ फिर से हमारा communation शुरू करेंगे " यह कहना है मुझे सौ परतिशत पता है कि ओ मुझे माफ करेगा | फिर भी भय निर्माण होता है कि कही ओ मुझसे फिर से दूर न हो जाऐं..., मै उसका साथ अब हमेशा के लिए चाहती हूँ ....
               
                                          समाप्त

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