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जैसा बोओगे वैसा पाओगे

*शीर्षक* - जैसा बोओगे वैसा पाओगे *********************** जैसा बोओगे वैसा पाओगे             बबूल अगर बोओगे आम कहां से खाओगे                 धृतराष्ट्र बनोगे ?  दुर्योधन दुशासन ही पाओगे           कृष्ण कहां से लाओगे  अर्जुन कैसे वन पाओगे           पूतनायें भ्रमित करेंगी   सूर्पनखायें  जन्मेगी         सीतायें छली जायेंगी  देवकी कारागार पायेंगी             दशानन दर्प करेंगे  कैसे कंसों से प्राण बचेंगे मासूम हंसी किलकारी को वो रोंदेंगे  हम यदि सुशिक्षा संस्कार नहीं भरेंगे  जो इंटरनेट की खाद पायेंगे  पश्चिम की कुत्सित हवा खायेंगे मां की ममता अंधी होगी तो संतानें क्यों नहीं गंदी होंगी अधिकारों की मांगें प्रलयंकारी होंगी अवश्य ही तब कर्तव्यों की आहुतियां होंगी  लक्ष्य जब भोग विलास अरु धन होगा  मन विचार चरित्र तब कैसे उज्जवल होगा कानून वना दो कितने भी सरकारें जोर ल...

लुटा के मोहब्बत ......

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  *लुटा के मोहब्बत ......* लुटा के मोहब्बत  गम खरीदकर बैठा हूँ ..! तूमसे वफा करके  जिंदगी से खफा होकर बैठा हूँ ..!! था मै मुकम्मल इंसान  तुमसे मिलकर फक़ीर बन बैठा हूँ ..! वफा तो देख मेरी मै फिर भी  सारी दुनिया कि दूवाए तुम्हे देकर बैठा हूँ ..!! करके तुमसे मोहब्बत मै  अपनों को छोड़कर बैठा हूँ ..! तेरे खातिर सारे रिश्ते  नाते तोड़कर बैठा हूँ ..!! सादगी तो देख मेरी तुम्हारे सारे झुठे वादों पर ऐतबार कर बैठा हूँ ..! न जाने क्यूँ फिर भी तेरे आने की आंस लगाएँ बैठा हूँ ..!! तुमसे वफा करके आँखों से  अश्क बहाए बैठा हूँ ..! ग़मो कि जायदाद में  सबसे अमीर बन बैठा हूँ ..!!                  *# Arya...*              Nanded (MH)              Mo.9881827551

महंगाई और आवश्यकता

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महंगाई और आवश्यकता दौनौ इतनी बड़ी  है कि ना चाहते हुए भी सब को बचत पर नजर रखनी पड़ती रही है। सब जानते हैं कि काजू बादाम आदि खाना हेल्थ के लिए अच्छा होता है परंतु जेब के लिए नहीं। कहा जाता है कि पहला सुख निरोगी काया होती हैं। बेहतर होगा कि ऐसे खाद्य पदार्थों का सेवन किया जाये जो सस्ती हो और हेल्थ के लिए लाभदायक भी हौ।जेसे मुंगफली, गुड, टमाटर,सूरजने की फली( ड्रम स्टीक ) मेथी,पालक,भूने चने,उपमा, दलिया, दूध दही, छाछ, हरी सब्जियों, तिल,पौप कौर्न, पानी, लसन, प्याज   हरे प्याज, राजमा, देशी चने, हरे चने, अंडे आदि। हेल्थ के लिए इन सब के अलावा धूप भी हड्डी को मज़बूती देती है जो धूप मैं विटामिन डी से मिलता है । शक्कर की बिमारी मैं भी धूप मैं बैठना फायदेमंद होता है। धूप से सस्ता कोई चीज है ? नही ना। सांसें गहरी ली जायेगी। ये भी सस्ती है। पैदल चला, जिसे गांधी जी कसरतौ की रानी कहा करते थे वह भी बड़ियां ओर सस्ता है। महिलाओं मैं खून की कमी, महावीर के कारण अधिक पाई जाती है। अतः वे खजूर और केला या गुड़ की पट्टी ले। साबूत अनाज भी अच्छा रहेगा। उपवास ना करें। सफाई का ध्यान रखें। भोजन मैं शलजम...

वर्तमान समय का पारिवारिक दृश्य""

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""वर्तमान समय का पारिवारिक दृश्य""                   ""छंद"" सच कहूं श्रीमान ऐसी अब बयार चली, माता-पिता हमको बोझ जैसे लगते हैं। भाई से भी दूर हैं हम बहनों से दूर ही हैं, बीबी बच्चे साथ रख छोड़ घर को चलते हैं। कभी गर मौका आया एक साथ होने का तो, बच्चों की पढ़ाई का हम जिक्र किया करते हैं। नही चाहते हम साथ अब घर के बुजुर्गों का, ऐसे ही माहौल को परिवार कहा करते हैं। सभ्यता अपनी और संस्कृति भूले हम, संस्कार होते क्या उसे भूल बैठे हैं। चाचा-चाची,मामा-मामी रिस्तों में फर्क नहीं, एक शब्द अंकल और आंटी रटे बैठे हैं। माना कि अंग्रेजी भाषा बहुत है महत्वपूर्ण, पर हिंदी का क्या हम मान भूल बैठे हैं। हिंदी ही कराती एहसास हमें रिश्तों का, अंग्रेज बन सारे अब हम रिश्ते भूल बैठे हैं। बच्चों को बतलाते हम आए तेरे अंकल-आंटी, बेटा नही जानता बुआ जी फुफा कौन हैं। आए मेहमान जैसे चाय पिए चले गए, बच्चों ने न जाना कौन थे ए क्यों आए हैं। लगे रहे वाट्सअप, फेसबुक, ट्विटर में, ऐसा लगा रिश्ते सारे नेट में समाए हैं। परिवार छोड़ सब अपनों से दूर हैं अब, रिश्तों में गांठ ऐसी सभी ने...

बाहुबलियों का कोहराम*

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*शीर्षक* - *बाहुबलियों का कोहराम* *********************** उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम कोहराम मचा है  पूरे भारत में बाहुबलियों ने  ताण्डव रचा है कहीं बेटियां मरतीं इज्जत लुटती नरसंहार मचा है सभी दलों में बाहुबलियों का एक सुरक्षित कोटा है  नकली शेर सभी हैं आदर्शों का टोटा है संसद से सड़कों तक सियारों का हाहाकार मचा है जिस जनता ने चुना उन्हें उन्हीं को रखा नचा है दक्षिणपंथी बामपंथी सभी ने अपना पाला लिया खिंचा है सभी ने अपने अपने बाहुबलियों की रक्षा में सुरक्षा जाल रचा है मीडिया न्याय भी निष्पक्ष नहीं यहां सब बिकता है  बाहुबल धन-बल पदबल भारी हो तो कोई नहीं टिकता है  कानपुर उन्नाव अभी गरम है इसलिए विपक्ष अभी एक दिखता है  राष्ट्र वाद का उदय हुआ है इसलिए सूरज में भी धब्बा दिखता है  सावन के अंधों को हर ओर हरा हरा दिखता है हर दुःखद घटना में उनको अपना सिंहासन दिखता है  राजनीति हावी हो जाती है मुद्दे गौण हो जाते हैं  ऐसी ही बेशर्म हाराकिरी में बाहुबली छुप जाते हैं अब ऐसे बाहुबली सहस्त्र बाहुओं के खण्ड खण्ड बाहु चाहिए  भारत को फिर से सत युग का परशुराम ...

तुम हमारे हो क्या ?

🍒🍒 *तुम हमारे हो क्या?*🍒🍒 देश हमारा  खेत किसान का  रक्त बहता सैनिक का  सड़क हमारी टैक्स तुम्हारा जिंदगी हमारी  आनंद तुम्हारा पूंजी हमारी मौज तुम्हारा पैसा आम का खर्चा तुम्हारा अस्पताल हमारे इलाज तुम्हारा आतंकी बाहर जेल में कौन ? अनाज हमारे दाम तुम्हारे परिवार हमारा आदेश तुम्हारा लड़ाई आजादी की लड़ी हमने राजगद्दी तुम्हारी जनता मौन बोला तुमने पाया तुमने खेल तुम्हारा इनाम तुम्हारा। राजा हम  गद्दी तुम्हारी गलती तुम्हारी भुगते हम वोट हमारा शासन तुम्हारा गली हमारी मुहल्ले हमारे पूछूं किससे  कौन हो तुम? जनता सबकी पुलिस तुम्हारे हक हमारा अधिकार तुम्हारा मांग हमारी  लूट तुम्हारी अपराधी तुम जेल में हम भगत लड़े आजादी मिली बिना लड़े गद्दी तुम्हारी ईमानदारी हमारी खोट तुम्हारा जलियांवाला कांड मरे हम राजनीति तुम्हारी हल्ला तुम्हारा संसद मौन घूसखोर तुम पीड़ित हम राजधानी सबकी अधिकार तुम्हारा संविधान में हम कहां है आज नियम बदलते बिन पूछे रोज परदेश यात्रा जाते तुम  खर्च हमारा आएगा परिवर्तन देश हमारा राज हमारा जागेगी जनता मिलेगा इंसाफ। सुधीर सिंह सुधाकर  राष...

सफर ऐ जिंदगी

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सफर ऐ जिंदगी लोग पता नही क्यों जल जाते हैं मेरी मुस्कान पर, क्यों कि... जिंदगी से जो भी मिला उसे कबूल किया मैंने कभी किसी चीज की फरमाइश नही कि... मुश्किल होता हैं यह सब मगर समझ पाना हैं मुझें क्यों कि... जीने के अलग हैं अंदाज मेरे जब जहाँ जो मिला, उसे अपनाया हैं मैंने जो ना मिला उसकी ख़याईश नही की मैंने... माना कि ओरो  के मुकाबले में कुछ ज्यादा पाया नही मैंने जो भी था उसमें खुश थी मैं कभी खुद को गिराकर कुछ उठाया नही मैंने... जो था उसमें संतुष्ट हूँ मै स्वाभिमान से जीना सीखा हैं मैंने... जो हाथों के लकीरों में था  वही तकदीर से पाया हैं मैंने... सुगंधा राजूलाल चाबुसवार नांदेड़ महाराष्ट्र

कुत्ते की पूछ

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कुत्ते की पूँछ:महेश राजा/ ----------------------------- एक टेढी पूंछ वाले कुते ने सीधी पूंछ वाले कुते से पूछा,"क्यों पार्टनर!तुम्हारी दूम सीधी कैसे हो गयी?क्या तुम्हारे मालिक ने इसे पोंगली मे डाल दिया था"? सीधी पूंछ वाला कुता पहले हीन भावना से ग्रसित हुआ फिर साहस बटोर कर उसने कहा,"बात दरअसल यह है कि मैं अपनी पूंछ सीधी करने की प्रेक्टिस कर रहा हूं।" टेढी पूंछ वाला कुता बोला," कुते की पहचान को क्यों संकट में डाल रहे हो।अभी हम कुत्ते इतने स्थापित नहीं हुए है कि चुनाव मे खडे हो सके।जब तक हमारी पूंछ टेढी रहेगी,आदमी हमेशा हम कुत्तों से डरेगा।" ...... *महेश राजा*.वसंत 51,कालेज रोड।महासमुंद।छ.ग. 9425201544 *9425201544

माँ एक एहसास

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*माँ एक एहसास*       माँ एक एहसास है, चलती धूप में परछाई की तरह साथ है.  जब भी मैंने खुद को अकेला पाया है, साथ खड़ा हमेशा माँ का साया पाया है..  यूं तो उलझने बहुत है जिंदगी में,  पर सुकून सिर्फ़ मां के साथ बैठ कर आया है.. जब भी गलतियां की हर बार उन्होंने माफ किया है, घर के बाहर होने पर हर बार मां के हाथों का खाना मिस किया है, खुद धूप में तपती है बच्चों पर ना पड़ने इसका साया दिया हैं, खुद एक रोटी कम खा कर बच्चों को पूरा निवाला दिया हैं.. प्यार क्या होता है यह सिर्फ मां ने बतलाया है , बच्चों की खुशी के लिए अपना हर दर्द छुपाया है . जिन्होंने पकड़ी हमारी उंगली है और चलना मुझे सिखाया है,  लाख बार गिर जाऊं फिर से उठना उन्होंने सिखाया है .. कितनी भी परेशान क्यों ना हो हमेशा मुस्कुराते देखा है,  जन्नत तो नहीं लेकिन करीब से अपनी मां को देखा है .. इस संसार में सब मोह माया है , एक मां ही है जिसका साया हमेशा साथ पाया है .. मां शब्दों में बयां नहीं हो सकती यह सिर्फ एक एहसास है , माँ मेरा तुम्हारे चरणों में बार-बार प्रणाम है...   ...

हिंदी साहित्य का सच्च

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*हिंदी साहित्य का सच* ________________________ हिंदी साहित्य को मैनें जैसा देखा और पाया है:-- ★★★★★★★★★★★★★★          जब भी कोई कहीं भी कुछ गद्य या पद्य में लिखता है और उसको पाठक   पढ़ता है। उसके लिखे से ही वह  उसकी बुद्धिमता को  (लेखक के) उसके ज्ञान को उसके साहित्यिक अनुशासन को देखकर बड़े ही आदर के साथ उस लेखन को स्वीकार कर लिया जाता जाता है । समकालीन परिदृश्य पर लिखना या कुछ भी कहना सबसे मुश्किल कार्य होता है और उन विषयों पर व्याख्यान देना हो  तो कलमकार को आलोचक, इतिहास का राजनीति का अर्थ  ,समाज के विभिन्न विषयों का  ज्ञान होना बहुत परम आवश्यक होता है ।साहित्य केवल व्याख्या का क्षेत्र हो  नहीं हो नहीं सकता ।यहां सिर्फ हम अपनी पसंद ना पसंद की रचनाओं को उत्कृष्ट की रचनाओं को उत्कृष्ट और रद्दी बता दिया और कार्य खत्म ।  असल में यहां (साहित्य समाज में) रचनाओं का सही- सही सटीक विश्लेषण समय और समाज के व्यापक प्रदर्शन में रखकर रखकर ही संभव हो पाता है।           छायावाद को जिस तरह उस काल में  जाने...

अहंकार

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कहने को तो लोग कहते हैं अहंकार आदमी का विनाश कर देता है !  मगर यहाँ जिस किसी को देखो अहंकार में ही दिखाई पड़ता है !!  ************************* अहंकारी रावण का पुतला दहन होता है हर वर्ष लेकिन !  आदमी सबक लेने को तैयार ही नहीं किसी क़ीमत पर !!  ************************* यहां आदमी आदमी के रिश्तो में प्रगाढ़ता आए कैसे !  अहंकार अपना सिर उठाए दोनों के बीच खड़ा मिलता है !!  ************************* बहुत आसानी से आदमी के अंदर अहंकार आता है !  यह अलग बात है  इसको मिटने में बहुत देर लगती है !!  ************************* भाईचारा का रोना रोने से भला नहीं होगा समाज का !  चाहते हो कुछ अच्छा तो अहंकार को देखो जहां मार डालो !!  ************************* आदमी की मुसीबतों में अहंकार शामिल है !  भला होगा दुनिया का जो अहंकार घायल हो !!  ************************* अहंकार हक़ीक़त की दुनिया को देखने ही नहीं देता !  इंसानियत का बसेरा आदमी के अंदर हो भी कैसे !!  ************* तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकर...

कविता पुष्प

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शीर्षक  पुष्प  मरुस्थलीय भूमि में भी खिल रहे हैं हम, कंटको से नित गले भी मिल रहे हैं हम। व्यक्त नहीं करते हैं निज हृदय की पीर, अधरों को मुस्कान के धागे से सिल रहे हैं हम। कभी ईश्वर के चरणों में अर्पित हो जाते हैं, कभी प्रेयसी के बालों की शोभा बढ़ाते हैं। पुष्पों का महत्व  आँकना होता है कठिन , कभी जीवन की अंतिम यात्रा में साथ निभाते हैं, भाँति-भाँति के रंगों के हम पुष्प हैं  कोमल, ग्रीष्म, शिशिर, शीत सहर्ष  सह रहे हैं हम, दुःख की आँधियों से किंचित भय हमें नहीं, मुख पर मुस्कान धरकर रह रहे हैं हम। बेला, चमेली,चंपा,जूही,सूर्यमुखी हम हैं, नारी का गजरा सुगंधित, चंद्रमुखी हम हैं। प्रतिकूल मौसम में भी मुस्कुरा रहे हैं हम, आशा का संगीत मधुरिम गा रहे हैं हम। प्रीति चौधरी "मनोरमा" जनपद बुलन्दशहर उत्तरप्रदेश ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★ रचना निःशुल्क प्रकाशित करने के लिए हमे मेल करें Marotigangasagare2017@gmail.com

प्रतिशोध

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  प्रतिशोध की ज्वाला में तुम्हारा बहकना अच्छा नहीं ! प्रतिशोध की आंधी में कहीं जल न जाए घर द्वार ख़ुद का !! ************************* प्रतिशोध का अंजाम कभी अच्छा नहीं देखा हमने !  मेरी मानो तो माफ़ कर दो उसकी नीचता को !!  ************************* प्रतिशोध की मंशा से अपराध का ग्राफ बढ़ गया इन दिनों !  प्रतिशोध की ज्वाला उठे इससे पहले बुझा दो इसको !!  ************************* प्रतिशोध की अग्नि में कितने खानदान भस्म हो गए !  क्या अभी भी प्रतिशोध का अंजाम देखना बाकी है !!  ************************ प्रतिशोध की हिंसा को रोक सको तो रोक लो !  वरना यह प्रतिशोध तुम्हारा परिवार ले डूबेगा !!  ************************* प्रतिशोध की भयावह तस्वीरों को देखा है हमने !  भला मैं कैसे कहूं तुमसे कि प्रतिशोध अच्छा है !!  ************* तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश !

उम्मीदों के दीपक

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ग़ज़ल - उम्मीदों के दीप.... उम्मीदों के दीप जलाये बैठे हैं । गहन तिमिर में प्रीत निभाये बैठे हैं ।। गैरों से क्या आस करें अपनेपन की । अपनों से ही यहाँ सताये बैठे हैं ।। जिसको अपना समझा उससे घात मिली । फिर भी उसको गले लगाये बैठे हैं ।। जो होगा , हो जाएगा , हो जाने दो । खुद को हम बस ये समझाये बैठे हैं ।। दुनिया में रिश्ते "निश्छल" कब होते हैं । गठरी में सब स्वार्थ दबाये बैठे हैं ।। रचनाकार - नवीन गौतम नयागाँव - कोटा - राजस्थान मो.नं. - 9057558170 ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★ ऐसे ही सभी विधायों का निःशुल्क प्रकाशन करने के लिए हमे मेल करmarotigangasagare2017@gmail.com

राहत इंदौरी साहब का परिचय

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*पेंटिंग में भी शायरी _ शायरी में पेंटिंग* ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 1 जनवरी 1950 को रफतुल्लाह कुरैशी तथा मकबूल उन निशा के घर राहत इंदौरी जी का जन्म हुआ वह अपने भाई बहनों में चौथे नंबर पर थे। घर के हालात भी  बहुत बेहतर नहीं थे।     बचपन से लेकर अपने युवावस्था तक उन्होंने जीविका के लिए महज 10 साल की उम्र में पेंटिंग का काम शुरू कर दिया था और पेंटिंग के काम में इतने व्यस्त होते चले गए कि उन्होंने पेंटिंग में महारत हासिल कर ली। कहते हैं उस जमाने में उनके बनाए पेंटिंग की मांग बहुत थी। उन्हें भी फुर्सत नहीं मिलती थी ।उनके बनाए पेंटिंग को खरीदने वालों को इंतजार करना पड़ता था। आज भी इंदौर शहर में उनके बनाए हुए पेंटिंग गली चौराहों पर दिखते हैं।           उर्दू  भाषा में उन्होंने पढ़ाई प्रारंभ की 1973 में स्नातक और 1975 में उर्दू से ही उन्होंने एम० ए० किया धीरे धीरे उनका मन डावाडोल होता रहा । वह निश्चित नहीं कर पा रहे थे कि अब क्या करें।              अहिल्या देवी कॉलेज में नौकरी का प्रस्ताव आया तो उसके लिए पीएच...

मैं इंसान हूँ

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हँसता हूँ मगर हँसाता नही मैं क्यों कि इंसान हूँ मैं गुदगुदाने वाले तो ज्यादा  शब्द लिखता नही मैं मगर पाठक का दिल खुश कर सकता हूँ मैं        कहि कहि पर दिल के भाव        यूँही लिख डालता हूँ मैं        आदमी महफ़िल मैं गुमसुम और        अकेले में हँसता हैं ...        ऐसे कुछ कुछ शब्द लिखता हूँ मैं मुख खोलकर हँसने की कला मुझे आती नही ओटो पर  स्मित हास्य ला सकता हूँ मैं कही गंभीर तो कहि अधिक गंभीरता दिखाई देगी मगर इंसान को इंसानियत दिखा सकता हूँ मैं   कवि मारोती गंगासागरे        

कविता हौसला

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तमन्नाओं कि रातो में एक दिया जलता हैं जाना है मुझे मंजिल तक मेरा उत्साह मुझे कहता हैं        अंधियारे से चलकर          रोशनी को ढूंढना हैं         थके है पैर फिर भी         एक दौड़ लगानी हैं टूटा है रिश्ता कुछ भी कठिन नही उसे जोड़ना , यही दिल को समझना हैं सोच बदलकर फिर उस रास्ते से जाना है मुझे अंधियारे में खुशी का दीपक जलाना हैं           आज तक तो मैं रुका नही           क्यों कि ऑप्शन आज तक ढूंढा नही           प्राण वायु को कोई ऑप्शन नही           चलना हैं  यही समझकर           मेरे जिंदगी में तेरे सिवा कोई और नही प्रयास करना हैं मुझे इसी बात पर भले ही आज क्यों ना मैं रुक जाऊं तेरा इंकार ही मेरा हौसला बढ़ाता है जब जब तू मुह फेरती हैं मुझे खुद को तराश ने का औसर मिलता हैं          कवि मारोती गंगासागरे

मेरी रचना गजल

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  ग़ज़ल शीर्षक:मेरी रचना बहुत लम्बी शब है सहर चाहिये सफ़र में मुझे हमसफ़र चाहिए भले दोस्ती हो सदा सोच कर मगर दुश्मनी को जिगर चाहिए ख़ुदा भी ज़मी पर उतर जाएगा इबादत में लेकिन असर चाहिए जिसे तुमने तोड़ा हज़ारो दफ़ा वही दिल हमें जोड़कर चाहिए मोहब्बत से दुनिया न महरूम हो सभी से दुआ उम्र भर चाहिए बलजीत सिंह बेनाम 103/19 पुरानी कचहरी कॉलोनी हाँसी 125033 मोबाइल 9996266210 ********************************************

आवाज दिल की ....

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कवि मारोती गंगासागरे रिम-झिम बारिशों में थंडी हवा चलने लगी अँधेरी रात में प्रियसी की याद सताने लगें यूँ शितल से मौहल में रोम-रोम विरह में जलने लगे ना पानी से यह आग बुझे लाखो कोशिशें करके थक गए सारे ... जितनी गहरी रात होती उतनी ही इस आग की ज्वाला भड़की यह काम देव भी मेरा दुश्मन बन गया  इस स्तिथि में , दिन में तो हल्का-फुल्का रहता हाल... अब तो नींद नही ना ही कोई भोजन मिलना है उसे यही सोचकर जागे रात भर न जाने कितनी राते ऐसी खुली आँखों से देखी और न जाने क्या-क्या होता हाल मेरा मिलन की चाह में.... उसकी राह में गुबारे से गाल चुपक गए रंग था  गोरा अब तो सावला हो गया बराबर आने वाली कुड़ती भी अब बड़ी होने लगी हैं बिना प्रयास किए भी एक महीने में बहुत सारा वजन खुद का घटा गए है.... अब तो सावन भी जाने को आया पर तु नही आयी न जाने तेरे चाह में कितने सावन आएंगे- जाएंगे मेरी चाह कभी नही होगी कम विश्वास है मुझमे तू आएगी एक दिन जरूर... कवि मारोती गंगासागरे