व्यंग्य ] गैर जरूरी शर्ते
[ व्यंग्य ]
गैर जरूरी शर्ते
मेरा प्रथम पौत्र जिसका कुल जमा उम्र ढाई साल तक पहुंच गई है, इस हाइटेक जमाने का मेरा प्रथम छाया युगीन लाडला ने अपने 'डिजिटल-हाइटेक' लड़के को भविष्य का सुपर कम्प्यूटर सरीखा बनाने का ख्वाब संजोये आज के 'जेनेटिक कल्चर' के हाई-फाई इंग्लिश एकेडमिक स्कूल में प्रवेश दिलाने के लिए इन स्कूलों की परिक्रमा करना शुरू कर दिया। अपने छायावादी युगीन लड़के के 'फास्ट-फूड ' जीवन शैली में अपना पारम्परिक भोजन का स्वाद परोसने की गरज से बोल पड़ा - " क्यों बच्चे के नाज़ुक पीठ पर स्कूल के भारी-भरकम बैग को लाद रहे हो ? मैंने भी तो तुम्हे इतने उच्च स्तर की शिक्षा दिलाई है, लेकिन स्कूल के बैग का बोझ तुम पर तब डाला जब उम्र के आंकड़ों में भारत सरकार की पंचवर्षीय योजना को साकार कर लिये थे।"
लाडले ने डायलाग मारा - " रहने दो अपने जमाने के भोपू नुमा ग्रामोफोन के भारी-भरकम, घिसे-पिटे आउट आफ डेट हों चुके रिकॉर्ड को बजाने को, और पंडित नेहरु जी के चलाये गए पंचवर्षीय योजना को आज के डिजिटल युग के बच्चों पर लागू करने की।
आज की सरकारें भी तो पंचवर्षीय नही रह गई हैं। आज की सरकारों की उम्र भी तो दो-ढाई साल की रहतीं हैं। मैं भी वर्तमान सरकारों की तर्ज पर इसी उम्र से अपने लड़के को
'सुपर मैन' बनवाने में कोई कोर-कसर नही रखूंगा।"
लड़के की महामहिम 'डोनाल्ड ट्रम्प' की शैली में डायलाग सुनकर चुप हो गया और स्वयं को सांत्वना दिलाने की गरज से मन-ही-मन में इस शेर को पढ़कर अपने कवि हृदय को ढाड़स दिलाया -
इनमें मासूमियत की उम्र कहां,
आज के बच्चे तो पैदा ही जवां होते हैं।
पहले जहां घर पर हिन्दी का एक समाचार पत्र आता था, पौत्र के दाखिले के नाम पर हिंदी-अंग्रेजी के कई संस्करण आने शुरू हो गए। लड़का-बहू बेड टी लेने के बाद सभी अखबारों में छपे एकेडमिक स्कूलों के उनके बड़े-बड़े विशेषताओं के दावों को इस कदर ध्यानस्थ करने में तल्लीन रहते कि मुझ पति-पत्नी के फिक्स्ड - टाइम- नाश्ते में भारतीय रेलवे के इंतजार की घड़ियां याद आने लगती।
एक दिन ऐसा हुआ कि अल:सुबह ही लड़का-बहू मय पौत्र सहित अंग्रेजियत में लक-धक होकर घर से निकल पड़े। मैं समझ गया कि स्कूल में दाखिले की नौबत पर झूठे शान-ओ-शौकत से ग्रस्त ये नामुराद मेरे पौत्र की संवेदनशीलता पर विराम लगाकर ही रहेंगे।
दोपहर के आस-पास जब ये लोग वापस आए तब बहू तो पौत्र को लेकर अपने बेडरूम में घुस गई और साहबजादे ने मेरे पास आकर बैठते ही प्रश्र कर डाला - " पापा! मम्मी की एजूकेशन क्या है ? "
मैंने कहा - " बरखुरदार ! तुम इनके इस रिटायर्ड उम्र में आज पहली मरतबा एजूकेशन पूछ रहे हो ? तुम्हे शर्म नही आती ? "
साहबजादे ने खुशामदी लहजे में कहा - " पापा ! दरअसल बात ये है कि आप तो आज के इन माडर्न-शैली के एकेडमिक स्कूलों के बारे में तो जानते ही हैं। अब वह जमाना रहा नही जैसे आप मुझे अंगुली पकड़कर स्कूल में ले जाकर छोड़ आए थे। मेरे दाखिले के समय टीचर ने केवल आप का और मेरा नाम पूछकर तुरंत ही नाम रजिस्टर में लिख लिया था ....।"
"...... आज तो बच्चे का नाम व उम्र बाद में पूछते हैं, पहले वे बच्चे के माता-पिता के पूरे जीवन का 'वायोडाटा' मांगते हैं। जिस एकेडमिक स्कूल में मैं गया था, उसमें अन्य स्कूलों से अपने ग्रेड को स्टैंडर्ड बनाने की होड़ में बच्चे के माता-पिता के अलावा ग्रैंड फादर एवं ग्रैंड मदर की पूरी जानकारी हासिल करने के पश्चात ही एडमिशन का फार्म इश्यू करते हैं। आपका एजूकेशन तो मुझे मालूम था लेकिन मम्मी का नही जानता था। इस कारण बैरंग वापस आ गया हूं.....।"
साहबजादे की बात सुनते ही कुछ देर के लिए कोमा जैसी हालत में संज्ञा-शून्य हों गया। थोड़ी देर पश्चात मुंह से नि:श्वास निकला - " अजी सुनती हों ......!"
मेरा क्षीण आवाज उनकी कानों में पड़ते ही वे बौखलाई हुई पास आई और बेटे से पूछा - " अरे ! तुम्हारे पापा को क्या हो गया है ....? जल्दी से डाक्टर को बुला लाओ ...! " कहते-कहते रुआंसी हो गई।
मैंने कहा - " मुझे तो कुछ भी नही हुआ है। जो कुछ हुआ है, तुम्हारे 'कलयुगी - लाडले' को हुआ है।"
कलियुगी-बेटा सुन मुझ पर विफर कर बोली - " यह आज कैसी उलूल-जुलूल बातें कह रहे हो...? ऐसा क्या कह दिया बेटे ने जो जीवन में पहली बार कलियुगी कह रहे हो...?"
मैंने कहा- " मुझे तो कुछ नही हुआ है, जो कुछ हुआ है, इसी से पूछ लो....!"
" क्या बात है बेटे ?" पूरा ममत्व लाडले पर उड़ेलते हुए वे बोली।
" बात कुछ नही है मम्मी! डैडी अनायास ही डिस्टर्ब हो रहे हैं। .... मैंने तो डैडी से बस केवल इतना ही पूछा है .... आपकी एजूकेशन क्या है .... ?"
" .... क्या ... ? .... क्या कहा ....? मैं समझी नही .... ? "
" मम्मी ! मेरे कहने का मतलब है कि आप कहां तक पढ़ी है ....?"
" बेटा ! यह तो मुझे खुद ही नही मालूम..... मैं कहां तक पढ़ी हूं ? तुम्हारे पिताजी क्या बताएंगे ? बस यह समझ लो .... मैं रामायण, श्रीमद्भागवत गीता .... आदि जो कुछ भी पढ़ती हूं , यह सब तुम्हारे नाना जी ने मुझे घर पर ही पढ़ना सिखाया है। ..... लेकिन बेटे! मेरी इतनी उम्र बीत गई, आज तक किसी ने भी मेरी पढ़ाई के बारे में नही पूछा। यहां तक कि जब मेरी शादी तय हो रही थी, उस समय तुम्हारे पिताजी काफी पढ़े-लिखे थे। तब भी तुम्हारे बाबाजी - ताऊजी ने मेरी पढ़ाई के बारे में नही पूछा .... तब तुम्हारे पिताजी की हिम्मत कैसे होती मेरे पढ़ाई के बारे में पूछने की.... ?"
" मम्मी! तुम भी बिना पूरी बात समझे नाराज होने लगी ...। बात तो यह है कि तुम्हारे पौत्र जी को जिस स्कूल में दाखिल कराने ले गया था, उस स्कूल में बच्चे के माता-पिता हीं नही , दादी-दादा के बारे मैं भी पूछताछ की जाती है... ।"
" हूं बेटा ! .... इसी अंग्रेजियत का ही फल तो आज के मां-बाप भुगत रहे हैं। शादी के नाम पर आज के लड़के-लड़कियों का शादी से पहले तरह-तरह के इंटरव्यू ले रहे हैं, इसी पढ़ाई का नतीजा है। आज का जमाना होता तो तुम्हारे पिताजी से मेरी शादी किसी भी कीमत पर न होती। .... मैं अनपढ़ होते हुए भी कितनी खुशी-खुशी से पूरी जिंदगी व्यतीत कर रही हूं। .... और आज देखती हूं इतना सब इंटरव्यू होने के बाद भी विवाह हुए साल भर नही बीतता कि मियां-बीबी में चख-चख होने लगती है।"
मां के इस उलाहना भरें उपदेशों को सुनकर लाडले जी का चेहरा यूं उतर गया मानो किसी जुए में बड़ी रकम हार गए हों।
कुछ देर की भीगी आंखों की खामोशी के पश्चात बेटे को तसल्ली देने की जहमत उठाते हुए मैंने कहा - " तुम जिस स्कूल में दाखिले के लिए गए थे, उसका नाम क्या है ? मैं कल खुद जाऊंगा पौत्र को लेकर .... और मन में यह बात यकीन कर लो कि तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी होगी, यह मैं वादा करता हूं।"
मेरे हंड्रेड परसेंट आश्वासन को सुनकर साहबजादे दोबारा कुछ बोलने की हिम्मत न कर सके।
दूसरे दिन पौत्र को लेकर साहबजादे के प्रिय स्कूल के प्रिंसिपल से मिलने के उतावलेपन में चपरासी को अपने नाम की पर्ची
थमाकर पास में पड़ी बेंच पर बैठा हीं था कि चपरासी ने अंदर से आते हुए कहा - " आपको मैडम बुला रहीं हैं।"
अंदर घुसते ही कानों में सद्य: रुपसी का झंकृत स्वर सुनाई पड़ा- " प्लीज! बी सीटेड !! .... यूं आर डैड मिस्टर ... जायसवाल जी ?"
" जी ! मैं उनका एकमात्र ओरिजनल पिता श्री ही हूं। कल वे आपके पास मेरे इस मासूम पौत्र को लेकर आए थे। "
" एस ! एस !! आप इस बच्चे से संबंधित पूरी ' डाक्यूमेंट्री ' ले आएं हैं ?"
" डाक्यूमेंट्री ! .... मतलब .... मेरा आशय है कि जब मैं स्वयं हाजिर हूं , तब सम्पूर्ण परिवार की ' डाक्यूमेंट्री ' या ' बायोडाटा ' जो भी जानना चाहती हैं, मुझसे पूछ लीजिए ....!"
" .... लेकिन मैडम ! एक बात मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि पौत्र के एडमिशन में पूरे खानदान से आपका क्या लेना-देना ? पढ़ना है पौत्र को ... पढ़ाना है आपको , जो कुछ भी इस बच्चे की बौद्धिक क्षमता के बारे में जानना चाहती हैं, वह इस बच्चे से ही टेस्ट लें-लें। .... और आपको इतनी समझ होनी चाहिए कि जब बच्चे के माता-पिता शिक्षित हैं तो बच्चा भी नैसर्गिक रूप से बौद्धिक क्षमता का ' पैदाइशी स्टाकिस्ट ' होगा ही ....। हां यदि आप मेरे बारे में जानना चाहती हैं तो मैं आपको अपने बारे में बताये देता हूं ....?"
"अरे जायसवाल जी आप...! एक सौम्य व्यक्तित्व शाली सज्जन ने कमरे में प्रवेश होते ही मुझसे मुखातिब हो हाथ जोड़कर हर्ष एवं सम्मान मिश्रित शैली में अभिवादन करते हुए मैडम से कुछ दूरी पर एक शानदार इजीचेयर में धंस गये।
" सर! डू यो नो मिस्टर जायसवाल....!"
" अरे मैडम! भला जायसवाल जी को शहर में कौन नही जानता ? आप लेखक- कवि- पत्रकार के साथ ही साथ समाजसेवी भी हैं ...। इनकी रचनाएं पत्र - पत्रिकाओं में पढ़ता रहता हूं।"
"ओह आईं एम वेरी सॉरी ...। आई एम वेरी हैप्पी एंड प्राइड आफ योर पर्सनालिटी....।डोन्ट मांइड फार माई विहैव .... ।" कहते-कहते मेज पर रखी कालवेल पर अंगुली रख दी।
बेल की ट्यूनिंग ध्वनि को सुनते ही चपरासी तुरंत प्रकट हुआ।
" गो एंड क्वीकली कम विद टी एंड विस्किट्स " कहने के उपरान्त प्रफुल्लता के भावुक आवेश में बहते हुए बोली - " मिस्टर जायसवाल जी! आपके पौत्र का एडमिशन मैं इसी समय कर लेती हूं। मेरे से जो कुछ भी आपको मेंटली डिस्टर्ब हुआ है... प्लीज! आप अदर वाइज फील मत करिएगा...। मैं भी आपकी फैन ही हूं ...। बस फेस - टू - फेस नही हुआ था। मेरा सौभाग्य है, आज आपका दर्शन कर रही हूं .... ।"
वे कुछ और खुशामदी स्वर निकालती, इससे पहले ही मैं बोल पड़ा - " पर मैडम! आप एक बात जान लिजिए, मेरी वाइफ 'क्वालीफाइड ' नही हैं। "
आप मुझे क्यों शर्मिन्दा कर रहे हैं ... ! आपकी वाइफ तो ' मस्ट- ए- इन्टलेक्चुकल लेडी ' होगीं, कहते-कहते मेरे पौत्र को पास बुलाकर पुचकारने लगीं और पौत्र से बिना कुछ औपचारिक संवाद किये मेज के दराज से फार्म निकालकर भरने लगीं। थोड़ी देर पश्चात बोलीं - " कल से इस वेरी - वेरी माई लवली चाइल्ड को भेज दीजिए। स्कूल के बस ड्राइवर को अभी आर्डर कर देती हूं। "
थैंक्स मैडम! वेरी थैंक्स यू !! कहकर मोहतरमा की ओर मुखातिब होकर उनसे पूछ बैठा - " मैडम! आपका लवली नेम ....!"
" मिस साइटा ... साइटा वेरमा।"
" क्या ! .... आप एंग्लो-इंडियन हैं ....?" देखने में बिल्कुल नही लगतीं ।
" नो, आई एम प्योर इंडियन....।"
"..... तो फिर आपका 'साइटा' नाम कैसे पड़ गया ?"
" बात यह है कि मेरा ओरिजनल बर्थ नेम सीता है ... सीता वर्मा। "
'सीता वर्मा ' को जब इंग्लिश में लिखकर उच्चारण करते हैं तो ' साइटा वेरमा ' हो जाता है। वैसे भी आज के मार्डन कल्चर के लोग अपने बच्चों का नाम राम- हनुमान - अंगद- सीता- लक्ष्मी - पार्वती, आदि रखने और पुकारने वालों को बैकवर्ड क्लास समझते हैं। आज के पैरेंट्स तो सिंपल, रोमी, रोजी, रीता, बाबी, डिंपल, रखने और पुकारने को आतुर हैं। और ये पैरेंट्स भी अपने चिल्ड्रेन से स्वयं को पिताजी- माता जी, फादर - मदर के बजाय, डैड- माम, कहलाने को अपना स्टेट सिंबल मानते हैं
यहां तक कि अपने जानवरों को भी शेरु- मोती नही, जैक- टामी कहकर पुकारते हैं।
ओह! फिर चलने के उपक्रम में बोल पड़ा- " थैंक्स मैडम! थैंक्स !! अब चलने की इजाजत दें।"
हर्षौल्लास में कहकर विद्यालय से घर की ओर भागम-भाग शैली का अनुसरण करते हुए ज्योंहि मेन गेट खोलकर घर में घुसा, देखा- साहबजादे और पतोहू बेसब्री से लेट हुए ट्रेन की तरह मेरा इंतजार कर रहे थे। कुर्सी पर बैठ भी नही पाया था कि साहबजादे का राहुल गांधी शैली में प्रश्र हो ही गया - " क्या हुआ पिताजी ..?"
" होगा क्या ...? मैंने तो उसी दिन कह दिया था, तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी होगी।
" क्या ! .... क्या सचमुच एडमिशन हो गया.....? यू आर वेरी ग्रेट डैडी ..... कहते-कहते हुए इस कदर स्टाइल में उछलने लगे मानो शतक के करीब पहुंचे सचिन तेंदुलकर का विकेट झटक लिया।
मैं भी सुबह से जारी भाग-दौड़ की थकान को मिटाने की गरज से इजीचेयर पर अधलेटी मुद्रा में पसरते हुए सोचने लगा - " पाश्चात्य शैली की आधुनिक शिक्षा देने का दम-खम दिखाने वाले ' ग्रेट इंडिया ' के ये ' दि ग्रेट इंडियन ', माडर्न एजूकेशन को बेचने और पालने की होड़ में, ऊंची दूकान, फीकी पकवान को चरितार्थ करते हुए कैसे-कैसे ढोंग रच रहे हैं और हम भारतवासियों की ये ' इंडियन औलादें ' अपने पारम्परिक , पारिवारिक , सामाजिक मर्यादाओं की धूनी जलाकर ' अंग्रेजियत ' में 'अंग्रेजों ' को भी मात कर देने के उतावलेपन में ' गैर जरूरी शर्तो ' को भी स्वीकार कर रहे हैं।
~~~ ईश्वर दयाल जायसवाल,
टांडा - अंबेडकर नगर (उ.प्र.) ।
संपर्क नं. - ,9307718789
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