गुरु विश्व है"

"गुरु विश्व है"

मैं जमीन हूं मुझ पर संसार खड़ा है।
गौर से देखो तो मुझ पर आसमां रुका है ।

मां बनकर कह दूं यह पिता है, तो वह परिवार बना है ।
गुरु बनकर कह दूं वह भगवान तो भगवान हुआ है ।

परिस्थितियों  से शिक्षित कर अनुभव रूपी गुरु बना हूं। 
सही गलत का पाठ पढ़ा कर वक्त कहलाना चुना हूं।

स्वदेश की खातिर द्रोण, वशिष्ट, चाणक्य बना हूं ।
कलम से बीज बोकर देशप्रेम का, द्रोही आचार्य बना हूं ।

मैं गुरु पर्व हूं ,एक संस्कृति हूं, एक देश हूं, एक विश्व हूं।
मैं आन, वान, शान, धरोहर,अनेक रूप ,उम्र में, अपने अंतर्मन में, सबका गुरु बना हूं।

अनुराधा बक्शी "अनु"( एडवोकेट)
 दुर्ग छ्तीसगढ़

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पाँच प्रेम कविता

प्रेम कहानी रिश्तें बदलतें हैं...

हिंदी भाषा का प्रसार प्रचार