पाँच प्रेम कविता
1 क्या देखतें हो... क्यों क्या देखते हो ऐसे आँखे खोलके ऐसें ना देखो मुझें बोलों ना क्या हैं मुझमें चूप क्यों हों कहो ना...कब तक देखोगे मुझें ऐसे...ना देखों मेरे दिल का दरवाजा खुल जाएगा... फिर तेरा निकलना मुश्किल हो जाएगा तो मेरे दिल में तू सफर का अप्साना बनकर रह जाएगा अब तो नजर हटाओ ना... नजर से मेरे... मैं देखना नही चाहती तुम्हारी आँखों को पर क्या करूँ तुम्हें देखें बिना आँखें नही रह पाती पूछो ना...अब मुझे क्यों बार-बार देख ...
टिप्पणियाँ