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नववर्ष की शुभ एवं मंगल कामनाएं

नववर्ष की शुभ एवं मंगल कामनाएं  नव वर्ष की नई प्रातः हो सुख समृद्धि दाता। खुशियों से जोड़े नाता दुःखों से न हो वास्ता। पिछले साल ने ले विदाई नव वर्ष ने चादर फैलाई। चिड़िया चहचहाई नव वेला है आई। सूर्यदेव ने नव प्रकाश है डाला सब ओर से, शुभ-शुभ के मिल रहे है सन्देश हम भी हो गए उसमें समावेश।। आज पुरानी कुंठाओं को त्यागे वैर-भाव को आने न दे आगे। नव चेतन का निर्माण करें ऐसा हम कुछ काम करें। जो बीत गई, सो बात गई गमों की बरसात बहीं। नई राह को तलाशे खुशियों को झोलियाँ भर-भर बाँटे। विगत वर्ष के कटु अनुभव राह में रोड़ा अटकाएंगे। पर भर के मिठास चाशनी की नई चाँदनी उनको दिखाएंगे। श्रम साधना से लिखेंगे इतिहास नव उत्साह से आलौकिक करेंगे ताज। कायम करेंगे राम राज एक होगा जमीन और आसमान। छोड़ गम और तम का साथ थामे एक दूसरे का हाथ। खुशियों के दीप जगमगाएंगे हर घर को रोशनी से नहलाएंगे। संर्घषों के चक्रव्यूह में घिर कर सुगम पथ का निर्माण करें। हर चेहरे से पोंछ उदासी खुशियाँ प्रदान करें।                                 अर्चना क...

*आओ करें स्वागत*

आप सबको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामना 2023 *आओ करें स्वागत* आओ करें स्वागत नव वर्ष का फैल रही है किरण हर्ष ही हर्ष का उड़ रहे हैं हंसी के फव्वारे चहुंओर,  खिल रहे हैं होठ कमल हो के विभोर। आओ करें स्वागत नव वर्ष का बह रही है हवा उत्कर्ष ही उत्कर्ष का बढ रहे हैं पग उर्जावान संकल्प संग, छा रहा है सर्व हृदय असीम उमंग। आओ करें स्वागत नव वर्ष का हो रही है वृष्टि मधुर स्वर सहर्ष का ताल से ताल मिलाकर हम मुस्कुराएं, करके ईश वंदना झूमे,नाचे, गाएं। आओ करें स्वागत नव वर्ष का फैल रही है किरण हर्ष ही हर्ष का                  रीतु प्रज्ञा             दरभंगा, बिहार

राष्ट्रवादी कृति इनसे हैं हम शिक्षको में भी लोकप्रिय

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राष्ट्रवादी कृति इनसे हैं हम शिक्षको में भी लोकप्रिय आजादी के अमृत महोत्सव के परिप्रेक्ष्य में गुमनाम पूर्वजों की यशगाथा पर आधारित राष्ट्रवादी पुस्तक इनसे हैं हम की लोकप्रियता शिक्षकों में भी बढ़ रही है। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अवधेश कुमार अवध द्वारा इक्यावन लेखकों के सह लेखन में लिखित इक्यावन प्रतिनिधि पूर्वजों की शौर्यगाथा है इनसे हैं हम। यह पुस्तक श्याम प्रकाशन, जयपुर से प्रकाशित एवं शिक्षा भारती, जमशेदपुर से मुद्रित है। इसकी माँग का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि छः महीने में ही इसके दो संस्करण प्रकाशित करने पड़े। डॉ अवध ने बताया कि हजारों लोगों द्वारा इनसे हैं हम को पढ़ते हुए अपनी फोटो और टिप्पणियाँ भेजी जा रही हैं। इसकी निःशुल्क पीडीएफ प्रति भी प्रबुद्ध देशप्रेमी स्वयं पढ़कर दूसरों को उपहार में दे रहे हैं। राष्ट्र और राज्यों की सरकारों के आँख बंद रखने के बावजूद भी आम जनता, शिक्षक और जागरूक विद्यार्थी इनसे हैं हम को सप्रेम अपना रहे हैं। भारतीय सेना से दिवाकर जी ने इसे पाठ्यक्रम में शामिल करने की माँग की है। शिक्षक कृष्ण मोहन तिवारी, अनिकेत कुमार, अजय सिंह, नितु सिंह, डॉ पवन, डॉ बिनोद,...

माँ तो माँ होती है

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माँ तो माँ होती है चुपके से छुपते-छुपाते क्या कभी अपनी माँ के पास  अब जाते हो? कुछ भी मत छुपाना तुम्हारी खूबसूरत बीवी व प्यारे बच्चों की कसम सच सच बताना नहीं न तो आज जाओ उसके सिरहाने सिमटी तकिया को  आहिस्ता से पलटो अपने दोनों हाथों से सम्हालकर उठाओ ध्यान से देखो फिर अपने माथे से लगाओ.... कुछ- कुछ या बहुत कुछ होने लगेगा जितनी तुम्हारे दिल में संवेदना है उतना ही ज्ञान चक्षु खुलेगा..... अगर गीलेपन का अहसास हुआ भींगे होने का आभास हुआ तो समझ लो कि- तुमको इस धरती पर लाकर तुम्हारी माँ ने बहुत बड़ी भूल की है जिसको वह सुधार तो नहीं सकती बद्दुवा भी तो नहीं दे सकती पर, अपनी भूल पर पल-पल अकेले में रोती है तकिया को भिंगोती है क्योंकि माँ तो माँ होती है माँ तो माँ होती है। डॉ अवधेश कुमार अवध साहित्यकार व अभियंता संपर्क सूत्र 8787573644

कैसे हम सच्चाई को जान पाएँगे

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कैसे हम सच्चाई को जान पाएँगे जब गजनवी के दरबार से सोमनाथ का आकलन और खिलजी के दरबार से  पद्मावती का आकलन, बख्तियार के दरबार से  नालंदा का आकलन तथा गोरी के दरबार से  पृथ्वीराज का आकलन पढ़ेंगे तो - कैसे हम सच्चाई को जान पाएँगे! जब बाबर के दरबार से  राणा साँगा का मूल्यांकन और हुमायूँ के दरबार से  सती कर्णावती का मूल्यांकन, तथा अकबर के दरबार से  महाराणा प्रताप एवं रानी दुर्गावती का मूल्यांकन करेंगे तो - कैसे हम सच्चाई को जान पाएँगे! जब जहाँगीर के दरबार से शक्ति व अमर का चित्रण शाहजहाँ के दरबार से  ताजमहल का चित्रण तथा औरंगजेब के दरबार से  शिवाजी व गुरुगोविंद सिंह का चित्रण देखेंगे तो - कैसे हम सच्चाई को जान पाएँगे! जब सिंधिया के दरबार से  मर्दानी लक्ष्मीबाई का निरूपण, अंग्रेजों के दरबार से  क्रांतिकारियों का निरूपण वामियों के दरबार से  सनातन का निरूपण तथा पूँजीपतियों के दरबार से  श्रमिकों का निरूपण वरेंगे तो - कैसे हम सच्चाई को जान पाएँगे! जब कांग्रेस के दरबार से  राष्ट्रीय स्वयं सेवक का चिंतन ब्रिटिश के दरबार से नेताजी सुभाष का...

हमे अपने बच्चे ख़ुद सम्हालनें होंगे

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हमे अपने बच्चे ख़ुद सम्हालनें होंगे --डॉ अवध एवं डॉ प्रतिभा हम किसी पर अपनी मामूली सम्पत्ति तक नहीं छोड़ते और अनमोल बच्चे छोड़ देते हैं। है न आश्चर्यजनक! लेकिन सच यही है और इसका दुष्परिणाम भी हमारे समक्ष है। आज के कलयुगी दौर में सभी कुछ इतना मिलावटी, पाखंडयुक्त व खोखला है कि किसी पर आसानी से विश्वास करना संभव नहीं रहा है। समाज आज पाखंडी, मज़हबी जालसाज़ों, अंधे क़ानून के रक्षकों जो सिर्फ़ नाम के रक्षक मन के भक्षक हैं, और दो मुखौटे वाले लोगों से घिरा है। समाज में झूठे, जालसाज़ लोग जो अपने मक़सद को पूरा करने के लिये किसी भी स्तर तक गिर जाते हैं। भोले भाले बच्चों को, युवा लड़कियों को अपने जाल में आसानी से फँसा कर शिकार बनाने वाले कुकुरमुत्ते से फैल गए हैं। इसका अर्थ यह नहीं की समाज सिर्फ़ इन नकारात्मक हैवानों से ही घिरा है। अच्छे सकारात्मक मददगार लोग भी हैं किंतु उनका प्रतिशत बहुत कम है। आजकल लोग दूसरों के मामले में पड़कर ख़ुद फँसना भी नहीं चाहते। आज का समाज जिस अंध-आधुनिकरण के मार्ग पर चल पड़ा है उससे हमारे बच्चे सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं। जिस तरह की फ़िल्मे और सिरीज़ चल पड़ी हैं उसमें कोई ...

ऊँची दुकान-फीका पकवान

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ऊँची दुकान-फीका पकवान --डॉ अवधेश कुमार अवध दुकान और पकवान दोनों मानव से जुड़ी अति प्राचीन काल से सतत चलने वाली आवश्यकताएँ हैं। दुकान पर माँग - पूर्ति द्वारा कई तरह के पकवान खरीदे जा सकते हैं। पकवान द्वारा उदरभरण के साथ-साथ रसना भी तृप्ति के कई सोपान तय करती है। प्रायः यही धारणा बलवती पायी जाती है कि ऊँची दुकान हो तो चोखा पकवान मिलना चाहिए। हल्की-फुल्की दुकान हो तो फीका पकवान की अपेक्षा रहती है। जब कभी ऊँची दुकान पर फीका पकवान मिलने लगे तो यह मुहावरा आप ही आप मुँह के कैद से दबे पाँव बाहर आ जाता है। लोगबाग कह ही देते हैं, "ऊँची दुकान- फीका पकवान"।  परितः पर्यावरणीय पतन के साथ-साथ साहित्यिक प्रदूषण भी चरमोत्कर्ष पर है। इस संक्रामक बीमारी से कवि सम्मेलन भी बचे नहीं हैं। कविताओं के अभाव से काव्य -मंच जूझ रहे हैं। कवि सम्मेलन में बहुत कुछ है, सब कुछ हो सकता है पर कविता नहीं है। कवि भी नहीं हैं। काव्य-प्रेमी भी नहीं हैं।  लोगों को मनोरंजन चाहिए इसलिए कवि सम्मेलन की ओर खिंचे चले आते हैं। यहाँ मंच पर भाँति-भाँति के विदूषक इंतजार कर रहे होते हैं। दर्शक ताली बजाने को तैयार नहीं और तथाकथि...

साहित्य का रुख समाचार की ओर होना अनुचित -

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साहित्य का रुख समाचार की ओर होना अनुचित -  डॉ अवधेश कुमार अवध यह निर्विवाद सिद्ध है कि साहित्य समाज का दर्पण है किन्तु इससे भी इंकार नही किया जा सकता कि साहित्य समाज का पथ प्रेरक भी है। दोनों का दोनों पर असर है। इक्कीसवीं सदी की सूचना क्रांति ने इस सम्बंध को और भी प्रगाढ़ एवं त्वरित प्रभावकारी बनाया है। क्षण मात्र में साहित्य का प्रकीर्णन समाज में हो जाता है और समाज की आकांक्षायें व सूचनायें साहित्य में सम्मिलित हो जाती हैं। हिंदी साहित्य का प्रारम्भिक दौर काव्य का था जिसमें कवि राजदरबारी होते थे और कविताओं का विषय आश्रयदाता राजाओं को महानायक बनाना होता था। चंदबरदाई और जगनिक जैसे कवि सुविख्यात थे। आम जनता और उसका दु:ख दर्द काव्य से बेहद दूर था। फिर समय बदला और काव्य का नायकत्व आश्रयदाता राजाओं की जगह परमसत्ता ने लिया। राम, कृष्ण, ब्रह्म और भगवान आदि महानायक बने। भक्त और भगवान के मध्य विविध रिश्ते तय किये गए किन्तु जनता और जन समस्या से काव्य का सरोकार बहुत कम बन सका। कबीर, जायसी, सूर व तुलसी भक्ति काल के शीर्ष थे। कालान्तर में बदलाव के साथ काव्य का झुकाव श्रृंगार व रीति की ओर हुआ। पु...

‘इनसे हैं हम’ किताब की समीक्षा : महान पूर्वजों की महागाथा

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‘इनसे हैं हम’ : महान पूर्वजों की महागाथा पुस्तक-इनसे हैं हम  संपादक-डॉ अवधेश कुमार अवध समीक्षक- डॉ वीरेन्द्र परमार   प्रकाशक-श्याम प्रकाशन, जयपुर  पृष्ठ-180  मूल्य-180/- वर्ष-2022 भारत भूमि का एक टुकड़ा मात्र नहीं है, बल्कि यह हजारों वर्षों की ज्ञान परंपरा है, वसुधैव कुटुम्बकम का उद्घोष है, ऋग्वेद की ऋचा है, गौतम बुद्ध का शांति संदेश है, भगवान श्रीकृष्ण की गीता का निष्काम कर्मयोग है, गुरु नानक की वाणी है, सरस्वती की वीणा है और भगवान शंकर का डमरू है I ज्ञान की समृद्ध परंपरा का नाम भारत है I ज्ञान के कारण ही इसे विश्वगुरु की संज्ञा दी गई है I ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अंधकार से प्रकाश, अज्ञान से ज्ञान और असत्य से सत्य की ओर बढ़ने का अमर संदेश देता है I वेद में कहा गया है कि ज्ञान ही मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है I भारत को विश्व गुरु के रूप में प्रतिस्थापित करने में हमारे पूर्वजों का अप्रतिम योगदान है I भारत के स्वतंत्रता संग्राम में असंख्य वीरों ने आत्मोत्सर्ग किया जिनमें से कुछ के नाम ही हम जानते हैं I अनेक स्वतंत्रता सेनानी गुमनाम रह गए I हमें अपने उन पूर्वजों के अव...

पहली पंक्ति वाले बेदाग अपराधी दंडित हों

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पहली पंक्ति वाले बेदाग अपराधी दंडित हों   - डॉ अवधेश कुमार अवध हम मानसिक रूप से आज भी गुलाम हैं और इस गुलामी को बनाये रखने में हमारी असफल शिक्षा व्यवस्था की भूमिका अहम है। वास्तविक रूप से शिक्षित हुए बिना ही कॉलेजों/  विश्वविद्यालयों से डिग्रियाँ मिल जाती हैं और येन केन प्रकारेण उच्च पद या उच्च सफलता को हथियाने में सफलता मिल जाती है। कम पढ़े लिखे, संघर्षमय दौड़ में शामिल न हो सकने वाले लोग या मनचाही सफलता से वंचित लोग तथाकथित सफल एवं उच्च पदस्थ लोगों को अपना आदर्श मान लेते हैं। यही से एक प्रछन्न अपराध जन्म लेता है। आइये, जरा विचार करें। किसी आशाराम, कामुक मौलवी, रेपिस्ट पादरी या रामरहीम के पास भक्तों की अगली पंक्ति में कौन होते हैं ? नि: संदेह हमारा इशारा कुछ डी एम, एस पी, न्यायाधीश, वैज्ञानिक, इंजीनियर, डॉक्टर, सी ए, प्रोफेसर, पूँजीपति एवं राजनेताओं की ओर होगा। बेचारी जनता जब बाबाओं के पास ऐसे महाभक्तों को देखती है तो खुद। अपने दिमाग से सोचना छोड़ देती है और आँखें बंद करके उनके पीछे लग जाती है क्योंकि अग्रिम पंक्ति की तथाकथित महान हस्तियों की अंधभक्ति उसके विवेक पर भारी पड़ती...

अभेद सार्वजनिक प्रकृति पूजा है छठ महापर्व

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अभेद सार्वजनिक प्रकृति पूजा है छठ महापर्व छठ पर्व का समय चल रहा है। हम सभी जानते हैं कि यह संयुक्त पर्व दीपावली के उपरान्त चतुर्थी से सप्तमी तक चलने वाला चार दिवसीय महापर्व है। छठी मइया के संदर्भ में कई मतों के बीच सबसे उपयुक्त मत यह है कि यह षष्ठी तिथि का अपभ्रंश होकर छठी हुआ है। अर्थात् साक्षात् देव भगवान भास्कर और छठी मइया की पूजा पर आधारित है यह पर्व। भगवान सूर्य और छठी मइया के संबंध के बारे में भाई-बहन का रिश्ता लगभग सर्वमान्य है। पौराणिक गाथाओं में भगवान कार्तिकेय की पत्नी के रूप में छठी मइया वर्णित हैं जिनको नव देवियों में छठे दिन पूजनीय माता कात्यायनी भी माना जाता है। भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री भी हैं छठी मइया। यह पर्व नवरात्रि भी भाँति एक साल में दो बार आता है। चैत्र शुक्लपक्ष और कार्तिक शुक्लपक्ष में उपरोक्त तिथियों को क्रमानुसार मनाया जाता है। रामायण काल में भगवान श्रीराम और माता सीता ने रावण बधोपरान्त छठ पर्व मनाया था। महाभारत काल में दानवीर कर्ण द्वारा भगवान सूर्य की उपासना का बहुत बार वर्णन है। पांचाली द्रौपदी द्वारा भी यह पर्व मनाया गया था। वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह पर...

माँ पर कविता कुछ औलादें

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एक माँ के ख़्वाबों का क़त्ल कर देती हैं कुछ औलादें ****************** एक माँ के लाडले होने का फ़र्ज़ भला तुम निभाओगे कैसे !  माँ की ज़िंदगी के रंज-ओ-ग़म का तुम्हें कुछ एहसास ही नहीं !!  ****************** एक माँ के ख़्वाबों का क़त्ल कर देती हैं कुछ औलादें ! ऐसे औलादों से भला माँ की रूह को सुकूँ मिले तो कैसे !! ****************** तमाम बेदनाएं सहती हुई एक माँ बेटे के सामने मुस्कुराती है !  ताउम्र शायद ही बेटे को माँ के ग़मों का अंदाज़ा लग पाए !! ****************** समझो तो माँ ही ज़िंदगी की अनमोल दौलत है ! वरना माँ तो माँ है तुमसे शिकायत करेगी कैसे !! ****************** माँ को ताने दे - दे उसे चोट पहुँचाते रहो तुम ! एक नालायक बेटे को हक़ है ताने सुनाने का !! ****************** माँ का कर्ज़ बेटे से कभी अदा हो नहीं सकता ! हाँ मगर माँ की बात मानते रहो यही काफी है !!  ****************** माँ को भी अपने बेटे पर नाज़ करने का हक़ है ! बेहतर से बेहतर कर यह हक़ अदा कर दो तुम !!      ************** तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच  संचालक अंबेडकरनगर उत्तर प्र...

जागतिक महिला दिवस के अवसर पर कविता वर्दानी

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      वर्दानी   ---------------- भारत की नारी आदिकाल से सदा रही मर्दानी। दुश्मन के शीश उतारे रण में सदा रही वर्दानी। हर काल में नर के संग- संग इतिहास रचे नारी ने। अगर किसी ने आंख उठाई बन गई काल भवानी। मेहनत से रिश्ता सदा रखा कभी न पीठ दिखाई। रूखी सूखी खा कर के घर की लाज बचाई। आन बान शान की खातिर लिखती नई कहानी। सावित्री जैसी दृढ़ नारी से यम ने हारी मानी। कभी किसी का बुरा न सोचे सबकी करे भलाई। नटवर की दीवानी बनकर प्रेम की ज्योति जलाई। अंग्रेजों ने पानी मांगा झांसी की रानी से। पदमा दुर्गा सारंधा की अनुपम शौर्य जवानी। जेठ की कड़ी दोपहरी भी नारी से घबराए। सावन में मेघों के संग मस्ती में नाचे गाए। युग बदले हैं नारी ने सदा रही बलिदानी। विजय पताका फहराया नारी ने जब भी ठानी।          -----------------                                    भास्कर सिंह माणिक, कोंच

कलुवा की गुड़िया"

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कहानी= ="कलुवा की गुड़िया"=             कस्तूरी ने बड़े ही बुझे मन से अपने हलक से दो=चार कोर उतारे और हाथ धो, पानी पीकर अपनी लुगड़ी (साड़ी )के पल्लू से हाथ पोछ झोली में सो रहे अपने 3 वर्षीय बेटे कलुवा के पास आ एक बार फिर उसके गाल को हल्के से छुआ ।अब बुखार कुछ कम हो गया था ।उसकी लड़की कमली अपने पिता रेवाराम के साथ रोटी खाकर अपने छोटे भाई कलुआ को झोली में सुलाते =सुलाते खुद जमीन पर ही सो गई थी और आज सुबह कमली को कलवा का ध्यान रखने का कहकर वह खुद दाडकी (मजदूरी )के लिए चली गई थी ।अब उसे छबड़ी (टोकरी) उठा फेरा लगाने जाना था उसका पति रोज सूरज सिर चढ़े ही उठता और मन होता तो अपने सुतारी के काम में लग जाता। इसके बाद उसे दिन में 10 बार चाय चाहिए और मुंह में बीडी भले ही दिन में खाना मिले या ना मिले लेकिन रात को थकान मिटाने के लिए दारु जरूरी थी।      शहर के पास बसे इस छोटे से गांव नुमां कस्बे में रेवाराम कोई  8 बरस पहले कस्तूरी को ब्याह कर लाया था। कस्तूरी ने यही तीन संतानों को जन्म दिया था जिनमें सबसे बड़ी लड़की कमली दूसरा सूरज जो कुपोषण का शिकार ह...

आइने से दोस्ती रखो शायद बात बन जाए

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आइने से दोस्ती रखो शायद बात बन जाए  ****************** आइने की तरह क्यों नहीं रखते किरदार अपना ! कहो कुछ करो कुछ बात अच्छी नहीं ज़माने में !! ****************** बहुत खूबसूरत चेहरा है तुम्हारा यह मालूम नहीं तुमको ! काश कभी मेरे आइने में भी अपनी तस्वीर देखो तुम !! ****************** आइना भी अपनी खुश क़िस्मत पर खुद दाद देता होगा ! सज संवर आइने में जब तुम अपना दीदार करती होगी !! ****************** आइने पर इस क़दर ग़ुस्सा क्यों कर रहे हो जनाब ! आइना तो आपको आप का असली चेहरा ही दिखाएगा !! ****************** भला अब तुम्हें तुम्हारी बुराई कौन बताएगा ! आइने से दोस्ती रखो शायद बात बन जाए !! ****************** कुछ दिनों बाद एक भला इंसान दिखेगा तुमको उसमें ! अपने साथ एक आइना जो रखने लगा है शख़्स वो !! ****************** गज़ब किरदार है तुम्हारे आइने का भी ! भला आदमी भी तुमको बुरा दिखता है !!                     ***********तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश ! संपर्क सूत्र – 9450489518