जागतिक महिला दिवस के अवसर पर कविता वर्दानी
वर्दानी
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भारत की नारी आदिकाल से सदा रही मर्दानी।
दुश्मन के शीश उतारे रण में सदा रही वर्दानी।
हर काल में नर के संग- संग इतिहास रचे नारी ने।
अगर किसी ने आंख उठाई बन गई काल भवानी।
मेहनत से रिश्ता सदा रखा कभी न पीठ दिखाई।
रूखी सूखी खा कर के घर की लाज बचाई।
आन बान शान की खातिर लिखती नई कहानी।
सावित्री जैसी दृढ़ नारी से यम ने हारी मानी।
कभी किसी का बुरा न सोचे सबकी करे भलाई।
नटवर की दीवानी बनकर प्रेम की ज्योति जलाई।
अंग्रेजों ने पानी मांगा झांसी की रानी से।
पदमा दुर्गा सारंधा की अनुपम शौर्य जवानी।
जेठ की कड़ी दोपहरी भी नारी से घबराए।
सावन में मेघों के संग मस्ती में नाचे गाए।
युग बदले हैं नारी ने सदा रही बलिदानी।
विजय पताका फहराया नारी ने जब भी ठानी।
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भास्कर सिंह माणिक, कोंच
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