अधूरे सपने
अधूरे सपने
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ज़माने से चली आयी यह रीत पुरानी है।
रात और दिन का मिलन कभी होता नहीं ।
ऐसा नहीं के इस बात से वे बेखबर नहीं
फिर भी एक दूजे का साथ इन्होंने छोड़ा नहीं
दुनिया निहारे इस अनोखे मेल को ,
और सोचें कुदरत के खेल को
जिसने साथ तो दिया एक दूजे का पर मिलन नहीं ।
एक दूजे के बिना ये दोनों अधूरे
फिर भी जी रहे हैं दोनों, एक दूजे के सहारे
आशा लिये मन में , के होंगे उनके सपने पूरे ।
बढ़ रहे हैं वे दोनों शाम सहर की ओर धीरे धीरे
श्रीमती शीला भनोत
हैदराबाद तेलंगाना
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