अधूरे सपने

अधूरे  सपने 

          -------------------- 


ज़माने से चली आयी यह रीत पुरानी है।

रात और दिन का मिलन कभी होता नहीं ।


ऐसा नहीं के इस बात से वे बेखबर नहीं 

फिर भी एक दूजे का साथ इन्होंने छोड़ा नहीं 

दुनिया निहारे इस अनोखे मेल को ,

और सोचें कुदरत के खेल को 

जिसने साथ तो दिया एक दूजे का पर मिलन नहीं ।

एक दूजे के बिना ये दोनों अधूरे 

फिर भी जी रहे हैं दोनों, एक दूजे के सहारे 

आशा लिये मन में , के होंगे उनके सपने पूरे ।

बढ़ रहे हैं वे दोनों शाम सहर की ओर धीरे धीरे


श्रीमती शीला भनोत 

हैदराबाद तेलंगाना

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पाँच प्रेम कविता

प्रेम कहानी रिश्तें बदलतें हैं...

हिंदी भाषा का प्रसार प्रचार