सपनों में आना छोड़ दे
सपनों में आना छोड़ दे।
चुराने वालों की, हम नींद भी चुरा ले।
गर ओ सपनों में,आना छोड़ दे ।
राजदार उनको, बना ले हम अपना।
गर ओ दिल, चुराना छोड़ दे।
बड़े मासूम बने बैठे हैं।
जैसे के अनजान है दिल्लगी से।
हम दिल का लगाना छोड़ देंगे,
गर ओ नजरों से छूना छोड़ दे।
यूं ही चलता रहे,
रातभर सिलसिला बातों का।
सुकून से हम भी सो पाए,
गर ओ रातों को जागना छोड़ दे।
©® अस्मिता प्रशांत "पुष्पांजलि"
भंडारा, 9921096867
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