बारिश पर रचनाएँ
स्वागत है आप सभी का इस अंक में बारिश सभी पसंद होती है | बारिश की खुशी शब्दों में बयां करने की खुशी तो लाजवाब होती है एक लेखक के लिए और कवि के लिए भी ... उसी खुशी को व्यक्त करने के लिए इस अंक को बारिश विषय दिया था और इसमें आपकी रचनाओं ने सच्च में बारिश की खुशहाली को दोगुणा किया है | आप सभी बारिश की ढेर सारी शुभकामनाएं
मारोती गंगासागरे
नांदेड़ महाराष्ट्र से
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*बूंदों का मौसम*
*हुई विदा अब ग्रीष्मा रानी
रिमझिम आई ऋतु सुहानी
हर्षित धरती का कोना कोना
टिप-टिप बरस रहा है पानी
*लुभा रहा ये महिना सावन
खुशियों से भर जाते दामन
उत्सवों से भरा माह यह
सज जाते हैं हर घर आँगन
*बरखा रानी की अगुवाई
मोर पपीहों की शहनाई
कारे बदरा थिरक रहे हैं
करती चपलाएँ रोशनाई
*हलधर खेतों को धाए हैं
गोरी मुन्नू भी संग आए हैं
झोली में बीज भर लाए हैं
हाँ,मोती ज्यों बिखराए हैं
*चारों ओर हरियाली छाई
बाली भुट्टों ने ली अँगड़ाई
ताल नदी भी झूम रहे हैं
नौकाविहार की बारी आई
*नहरें बनी गाँव की गलियाँ
चुन्नू मुन्नू रानी व मुनिया
छप-छप करते हैं तैराते
कागज की रंगीन कश्तियाँ
*दूर देस से बिटिया आई है
बाबुल की दुनिया आई है
राखी के रेशमी बंधनों में
बहना, प्यार समेट लाई है
*गली-गली गाँव की सारी
सखियों ने जो महकाई हैं
डाल-डाल पर झूले लटके
गीतों ने धूम खूब मचाई है
*सोमवार को सजे शिवाला
पंचमी को नाग निवाला
कान्हा भी है आने वाला
हर यशोदा चाहे इक लाला
*सावन ने जो झड़ी लगाई
पिया की याद बहुत आई
हे मेघा तू परदेस जाकर
सन्देसा मेरा तू पहुँचा देना
निशदिन बरसे हैं मेरे नैना
सरला मेहता
इंदौर
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जल पर कलम
प्यास बुझाने को व्याकुल सावन की बुंदे
समंदर में जज्बा कहा प्यास बुझाने का यार रिश्तेदारो
बुंदे बुंदे बारिश की बूंदों
बूंदों को बदोलत जीवन की सोगात पाई हमने
ज़मीं पर जल जीवन लिया यार रिश्तेदारो
आस्मां के बुलावे पर जब जब
श्वेत वस्त्र धारण कर उपर पहुची
दुनिया पूकार उठी बादल बादल
याद सताने लगी यार की बुंदों को
मशाल जला तब देखा बुंदों ने निचे
चोंच खोल पक्षी तलाश रहे बुंदों को
पशू भटक रहे बुंदों की खोज में
और जब देखा बूंदों ने हाय किसन
अपने आश्को से खेत सींचने का
असफल प्रयास करते हुए रोते
छोड़ साथ आसमान का दोडी
भागी धरा पर आ पहुंची बुंदे
बुन्दे बुंदे सावन की बुंदे बरसी
समंदर बनो नब नो यार दोस्तों
आपकी मर्जी या आपकी किस्मत
बुंदेलखंड बनना मत बिसार देना
अपने परायो की प्यास बुझाना यार
अंजुली में भर कर जब बुंदे मारी
सजनी पर साजन ने अमर प्रेम की तब उपजी बहुतेरी जमाने में
दुनिया की हवा लग गई बुन्दो पर
सामुहिक रूप से हत्यारी बनी हाय
गांव शहर हर जगह मोत बाटी बुंदों ने हाय बुंदों ने राम बुंदों ने
बाड बाड दुनिया पुकारा करी
दो बुंदे आंखों से न टपके दुआ करना
बूंदों को सहेज रखना तरकिब से
बुंदे बुंदे बारिश की बुंदे हाय बुंदे
अलका जैन
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झूमे धरती और गगन
मेघ बरस के आया सावन ,
झुमे धरती और गगन।
बारिश की सोंधी सोंधी सुगंध,
मन को प्रसन्न करे बारिश के बूंद।
पेड और लता बारिश में मगन,
भिगे मन और आँगन ।
सब तरफ हरियाली छाई,
विविध रंगों के फूलों की बहार आयी।
काले - काले बादल गरज रहे है,
झूम - झूम कर बरस रहे है ।
चम - चम बिजली गरज रही है,
चारो और चमक रही है।
छम - छम बूॅंदे बरस रहे है,
सबके मन को लुभा रहे है ।
मेघ बरस के आया सावन,
झूमे धरती और गगन।
यशोधरा दशरथराव नेत्रगावकर
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*बारिश*
जब बारिशे बरसती है,
पागल सी थिरकती है |
अपना पराया ना सोचकर सबको भिगोती है,
रोते इंसानो का दर्द छुपा लेती है |
बारीश पसंद है और हम भिगना भी चाहेंगे,
इन बुंदो के आँचल में थोडा सुकून पायेंगे |
किसी के गम छुप गए तो किसी को गम मिल गए ,
इन्ही बरिशो ने कही खुशिया तो कही सैलाब लाया |
बारिशो का मौसम लाता है बहार,
शहरो मे खुशिया औंर गावो मे पाणी का बाढ़ |
*कवयित्री:- सुजाता पंडित पतंगे*
महाराष्ट्र नांदेड से
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