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मंगलमय हो नववर्ष उनके लिए भी

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शीर्षक - मंगलमय हो नववर्ष उनके लिए भी  घुट - घुटकर जो जीते हैं , विष अश्रुओं का पीते हैं , नहीं खोलते हैं हृदय अपना , उधड़न पीड़ाओं की ख़ुद ही सीते हैं , मंगलमय हो नववर्ष उनके लिए भी । दंश कटु वचनों का जो सहते हैं , अलग होकर समाज से रहते हैं , ठण्डी रखते हैं आग मन की , किसी से व्यथा न अपनी कहते हैं , मंगलमय हो नववर्ष उनके लिए भी । ठोकरें दर - दर की जो खाते हैं , मूल्य निज आदर्शों की चुकाते हैं , श्रेष्ठ होकर भी हेय हैं जो सबकी दृष्टि में , अपयश , अपमान ही सबसे पाते हैं , मंगलमय हो नववर्ष उनके लिए भी । जो निर्बल हैं , दीन - हीन हैं , बंधु - बांधव , सहचर विहीन हैं , कर्तव्यों के हृदय पर भार हैं जो , कीच युग की , वेदना - मलिन हैं , मंगलमय हो नववर्ष उनके लिए भी । मुँह फेर चुके हैं जिनसे जगदीश , झुका रहता है हमेशा जिनका शीश , नहीं गले से जिनको लगाता है कोई , नहीं शीश पर हाथ रख देता है आशीष , मंगलमय हो नववर्ष उनके लिए भी ।                            -  मुकेश शर्मा          ...

राखी बनाम वचन पर्व

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राखी बनाम वचन पर्व थाल सजाकर बहन कह रही,आज बँधालो राखी। इस राखी में छुपी हुई  है, अरमानों की  साखी।। चंदन रोरी अक्षत मिसरी, आकुल कच्चे-धागे। अगर नहीं आए तो  समझो, हम हैं बहुत अभागे।। क्या सरहद से एक दिवस की,छुट्टी ना मिल पायी? अथवा कोई और वजह है, मुझे बता दो भाई ? अब आँखों को चैन नहीं है और न दिल को राहत। एक  बार बस आकर भइया, पूरी कर दो चाहत।। अहा! परम सौभाग्य कई जन, इसी ओर हैं आते। रक्षाबंधन के अवसर पर, भारत की जय गाते।। और साथ में ओढ़ तिरंगा, मुस्काता है भाई। एक साथ मेरे सम्मुख हैं, लाखों बढ़ी कलाई।। बरस रहा आँखों से पानी,कुछ भी समझ न आये। किसको बाँधू, किसको छोड़ू, कोई राह बताए? उसी वक्त बहनों की टोली, आई मेरे द्वारे। सोया भाई गर्वित होकर, सबकी ओर निहारे।। अब राखी की कमी नहीं है और न  कम हैं भाई। अब लौटेगी नहीं यहाँ से, कोई रिक्त कलाई।। लेकिन मेरे अरमानों को, कौन करेगा पूरा? राखी के इस महापर्व में, वचन रहे न अधूरा।। गुमसुम आँखों को पढ़ करके,बोल उठे सब भाई। पहले वचन सुनाओ बहनों, कुर्बानी ऋतु आई।। बहनों ने समवेत स्वरों से, कहा सुनो रे वीरा ! "धरती पर कोई भी नारी, न ...

बारिश पर रचनाएँ

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   स्वागत है आप सभी का इस अंक में बारिश सभी पसंद होती है | बारिश की खुशी शब्दों में बयां करने की खुशी तो लाजवाब होती है एक लेखक के लिए और कवि के लिए भी ... उसी खुशी को व्यक्त करने के लिए इस अंक को बारिश विषय दिया था और इसमें आपकी रचनाओं ने सच्च में  बारिश की खुशहाली को दोगुणा किया है | आप सभी बारिश की ढेर सारी शुभकामनाएं मारोती गंगासागरे नांदेड़ महाराष्ट्र से *****************************************  *बूंदों का मौसम* *हुई विदा अब ग्रीष्मा रानी रिमझिम आई ऋतु सुहानी हर्षित धरती का कोना कोना टिप-टिप बरस रहा है पानी *लुभा रहा ये महिना सावन खुशियों से भर जाते दामन उत्सवों से भरा माह यह सज जाते हैं हर घर आँगन *बरखा रानी की अगुवाई मोर पपीहों की शहनाई कारे बदरा थिरक रहे हैं करती चपलाएँ रोशनाई *हलधर खेतों को धाए हैं गोरी मुन्नू भी संग आए हैं झोली में बीज भर लाए हैं हाँ,मोती ज्यों बिखराए हैं *चारों ओर हरियाली छाई बाली भुट्टों ने ली अँगड़ाई ताल नदी भी झूम रहे हैं नौकाविहार की बारी आई *नहरें बनी गाँव की गलियाँ चुन्नू मुन्नू रानी व मुनिया छप-छप करते हैं तैराते कागज की रंगी...

होली पर रचनाएँ

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   होलो की आप सभी को ढेर सारी शुभकामनाएं | स्वागत करता हूँ आप सभी का मेरी रचना के इस मंच पर |     भारतीय संस्कृति में बहुत से त्योहार मनाएँ जाते उन में महत्वपूर्ण और एकता को बांधे रखने वाला त्योहार होली का हैं | साथ ही होली का जब दहन होता है तो उसमें सभी नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट कर सकारात्मक सोच , पहल का अंगीकार करना ऐसी कही धारनाएँ होली का त्योहार मनाने के पीछे हैं |         हम भी अपने साहित्यिक जगत में होली इस विषय पर कई रचनाकारों के रचनाओं का संचयन किया और इस तरह होली मनाने का प्रयास किया...             रंगों में रंग प्रेम रंग      प्रेम रंग सा दूजा रंग ना कोई      इस रंगमे रंगना चाहे सभी      फिर भी इससे द्वेष रखते सभी आओ यह द्वेष मिटाए  होली में लाल गुलाल उड़ाएँ सभी रंग छोड़कर एकता में हम रंग दिखाएँ... इसी तरह होली का त्योहार मनाएँ संपादक मारोती गंगासागरे नांदेड़ महाराष्ट्र से विषय: होली   होली मिलन-मधुर मिलन होलिका दहन में, सवाल उठता ज़हन में, क्...

बारिश हो रही हैं

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बारिश हो रही हैं बारिश हो रही हैं, तेरी याद आ रही हैं | धरा के आँचल में..., बर्खा गुनगुना रही हैं | य सारे जहाँ में खुशी हैं , दिलबर थोड़ीसी दूरी हैं | इस मौसम के बहारों में..., आओ ना साथ चलते हैं | दिल का दरवाजा खोलके , सुनो बारिश भी गा रही हैं | प्रेम रंग में डूबकर अब , ओ भी मस्ती में आ रही हैं | मिट्टी का गंध उढ़ा हैं , हवा में फैला चारो ओर | मिलन हुआँ हैं प्रकृति का , देख बारिश में भीगा हैं तन | मारोती गंगासागरे 

गोष्ठी व पुस्तक विमोचन सम्पन्न

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गोष्ठी व पुस्तक विमोचन सम्पन्न गुवाहाटी। मेलाराम वफ़ा साहित्य अकादमी के तत्वाधान में गुवाहाटी असम साहित्य सभा, ज्योति अग्रवाल हाल में मेलाराम वफ़ा साहित्य अकादमी की दूसरी मासिक गोष्ठी समारोह पूर्वक सम्पन्न हुई। कार्यक्रम का प्रारम्भ सरस्वती वंदना तथा अतिथि गण द्वारा दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। प्रसिद्ध शायर, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और पत्रकार स्व. पंडित मेलाराम वफ़ा को श्रद्धापूर्वक याद किया गया। मेलाराम वफ़ा साहित्य अकादमी के सौजन्य से डॉ चंद्रकांता शर्मा जी की पुस्तक "युगे- युगे शक्ति अपरूपा" का विमोचन भी हुआ। गोष्ठी के मुख्य अतिथि आ. दयानंद पाठक जी, अति विशिष्ट अतिथि आ. मुक्ता बिस्वास, एवं विशिष्ट अतिथि आ.मंजरी शर्मा रहीं। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता आ. नंदा शर्मा जी, आ. सौमित्रम जी और  ब्रह्मपुत्र साहित्य मंच के अध्यक्ष किशोर रहे। श्री जैन ने पुस्तक से जुड़ी नारी शक्ति के कई उदहारण दिए और बताया कि वर्त्तमान युग में महिलाओं ने अपनी शक्ति और मज़बूती का परिचय भी समय समय पर दिया है। वक्ताओं ने अपने वक्तव्य में नारी की सहनशीलता, समरसता और धैर्य को पुरुष से बढ़कर बताया। पुस्...

पत्तल चाटू

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पत्तल चाटू सालों तक जो लोग कांग्रेस के खिलाफ बोलने को देश के खिलाफ बोलना साबित करते थे अब वही लोग भाजपा के खिलाफ बोलने को देशहित में बोलना मानते हैं। असल में ऐसे लोगों का देश से कुछ लेना-देना नहीं है। ऐसे लोग सत्ता का पक्ष और सत्ता का विरोध देशहित में नहीं चुनते बल्कि स्वहित में चुनते हैं। इनको जहाँ मुफ्त में पत्तल चाटने को मिलता है, उसकी जयकारी लगाते हैं, जहाँ नहीं मिलता उसके विरोध में हो जाते हैं। देश के जन सामान्य को इतनी कुशलता से भरमाते हैं कि आम जन इनको देश का प्रखर शुभचिंतक मान लेता है। इनका न कोई सिद्धांत होता है न ईमान। इनके लिए देश मात्र स्वार्थ सिद्धि का अड्डा लगता है और जनता को ये अपने हित में भीड़ समझते हैं। इनको आज के समय में मीडिया गोदी लगता है और पहले धवल लगता था। ऐसे लोग इस बात पर चर्चा कभी नहीं करते कि भारत में कई बड़े नेताओं के अपने मीडिया हाउस, अपने पत्रकार और अपने लेखक रहे हैं जो गधे को घोड़ा और घोड़े को गधा सिद्ध करना ही अपना परम उद्देश्य मानते हैं। ये आस्तीन के साँप से भी अधिक खतरनाक होते हैं क्योंकि ये भोली जनशक्ति को अपने साथ जोड़े रखने में अति कुशल होते हैं। ऐसे फ्...

गोदान की धनिया और धनिया का गोदान

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गोदान की धनिया और धनिया का गोदान                   डॉ. अवधेश कुमार 'अवध' गोदान के संदर्भ में दो मुख्यत: बातें सामने आती हैं। एक 1936 में प्रकाशित मुंशी प्रेमचंद का जग जाहिर उपन्यास गोदान और दूसरा मत्यु के उपरान्त वैतरणी पार करने के लिए गोदान। इन दोनों गोदानों में गाय का जिक्र है साथ ही आज के दौर में परिवर्तन की शुरुआत हो गई है। अब गाय के बदले कुछ हजार रुपये देकर काम चलाया जाने लगा है जिसका श्रीगणेश प्रेमचंद की धनिया ने किया था।  हिंदू धर्म में सर्वोच्च चाहत के रूप में मोक्ष प्राप्ति को माना गया है। मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक इसी मोक्ष की चाहत में पल- प्रतिपल धर्म सम्मत कार्य करता रहता है। सामाजिक नियन्त्रण का प्रमुख साधन धर्म उसे पाप न करने और यथाशक्ति पुण्य करने की ओर प्रवृत्त रखता है। धार्मिक क्रिया कलाप, पूजा, व्रत, अनुष्ठान आदि बहुत से ऐसे कार्य हैं जिनके पीछे एक मात्र उद्देश्य मोक्ष ही होता है। मोक्ष पाना अर्थात् पुनर्जन्म एवं आवागमन से मुक्त हो जाना। मोक्ष प्राप्ति के लिए कुछ मानकों को पूरा करना होता है जैसे पुत्र पैदा करना, कन्...

मैं विश्वनाथ का नंदी हूँ

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मैं विश्वनाथ का नंदी हूँ मैं विश्वनाथ का नंदी हूँ, दे दो मेरा अधिकार मुझे। वापी में हैं मेरे बाबा, कर दो सम्मुख-साकार मुझे।। अब तो जागो हे सनातनी, डम- डमडम डमरू बोल रहा। न्यायालय आकर वापी में, इतिहास पुराने खोल रहा।। अब बहुत छुप चुके हे बाबा, करने दो जय-जयकार मुझे। एक विदेशी खानदान ने, मंदिर को नापाक किया था। मूल निवासी सनातनी के, काट कलेजा चाक किया था।। औरंगजेब नाम था उसका, वह धर्मांध विनाशक था। भारत माता के आँचल का, वह कपूत था,नाशक था।। आस्तीन में साँप पले थे, बहु बार मिली थी हार मुझे। ले रहा समय अब अँगड़ाई, खुल रहे नयन सुविचार करो। बहुत सो चुके हे मनु वंशज, उठ पुनः नया उपचार करो।। लख रहा दूर से बेसुध मैं, वर्षों से बाबा दिखे नहीं। मैं अपलक चक्षु निहार रहा, विधि भी आकर कुछ लिखे नहीं।। अवध अहिल्या भक्तिन जैसा, दिख नहीं रहा अवतार मुझे। डॉ अवधेश कुमार अवध साहित्यकार व अभियंता संपर्क 8787573644

धार्मिक ग्रंथों की पुनः मीमांसा आवश्यक

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धार्मिक ग्रंथों की पुनः मीमांसा आवश्यक डॉ अवधेश कुमार अवध समय के साथ प्राचीन काल के कई शब्दों के अर्थ बदल चुके हैं। कुछ शब्दों के अर्थ अपने पर्याय से इतर रूढ़ हो गए हैं। उनका रूढ़त्व विपरीत अर्थ या अनर्थ तक पहुँच गया है। संस्कृत या हिंदी काव्यों का काव्य सौष्ठव भी आज जन साधारण के लिए कठिनाई का कारण है। इसी संदर्भ में आचार्य केशव दास को "कठिन काव्य का प्रेत" का संबोधन मिला था। अलंकारों के झंकारों में काव्य में रस एवं रुचि की निष्पत्ति सुगम होती है जो समझ में न आने पर नुकसानदायक भी है। इसी तरह शब्द शक्ति त्रय यथा- अभिधा, लक्षणा और व्यंजना को आज के समय में या तो हम समझना भूल गए हैं या समझना नहीं चाहते और स्वार्थवश दुरुपयोग भी करते हैं।  एक और कमी प्रायः देखी जा सकती है। किसी विषय को ठीक से जाने या समझे बिना अपनी विशेषज्ञ राय प्रस्तुत करना। "नीम हकीम खतरे जान" केवल झोला छाप डाक्टरों तक ही सीमित नहीं है बल्कि प्रायः सभी क्षेत्रों में इसके अंगद पाँव जमे हैं। विशेषज्ञता की योग्यता के बिना ही बिना किसी लाज-शर्म के तत्संबंधी विषय में राय लेने और देने का खेल, सामान्य जन मानस के...

कबीर और तुलसी को बाँटने वाले नासमझ हैं**कबीर के उद्देश्य को तुलसी ने पूर्ण किया**कबीर और तुलसी दोनों हिंदुत्व के पोषक थे*

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*कबीर और तुलसी को बाँटने वाले नासमझ हैं* *कबीर के उद्देश्य को तुलसी ने पूर्ण किया* *कबीर और तुलसी दोनों हिंदुत्व के पोषक थे* डॉ अवधेश कुमार अवध संत कबीर के जन्म के बारे में प्रचलित कहानियों का निचोड़ यह है कि ये लहरतारा सरोवर के किनारे पाए गए। एक जुलाहे दम्पत्ति ने इनका लालन- पालन किया और ये भी जुलाहे का काम करने लगे। उस समय काशी जनपद में जुलाहे हिंदू नहीं थे पर अन्य मुसलमानों की तरह कट्टर मुसलमान भी नहीं थे। अर्थात् रोजी-रोटी के जुगाड़ में ये सूत कातने वाले सामान्य सर्वहारा थे। शायद इसीलिए कबीर कभी भी इस्लाम या मुसलमानों से प्रभावित नहीं दिखे। जबकि साधारण मुसलमान अवश्य कबीर से प्रभावित थे। कुछ बड़े होने पर कबीर उस समय के वैष्णव गुरु रामानन्द को गुरु बनाने पर अटल रहे। यदि कबीर का परिवार कट्टर मजहबी होता तो पालित बेटे द्वारा यह सोचना भी सम्भव नहीं था। कबीर ने ब्राह्मणों के घोर विरोध और गुरु रामानन्द द्वारा बार-बार ठुकराए जाने के बाद भी उनको ही गुरु माना। अन्ततः रामानन्द ने कबीर को अपने शिष्यों में प्रथम स्थान दिया।  कबीर जीवन पर्यंत "राम" को जपते रहे और "राम" से परिचय क...

वसंत के आगमन पर वसंत की खोज

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वसंत के आगमन पर वसंत की खोज - डॉ अवधेश कुमार अवध वसंत उल्लास का नाम है। कंगाली बिहु के बाद आये भोगाली बिहु में पूर्ण उदर संतुष्टि का नाम है। ठंड से ठिठुरती अधनंगी देह को मिली धूप की सौगात का नाम है। धरा के सप्तवर्णी श्रृंगार का नाम है। भगवान भास्कर के दिशि परिवर्तन का नाम है। आम के बौर के सँग मन बौराने की मादकता का नाम है। काक और पिक के बीच चरित्र उजागर होने का नाम है। फाग के झाग में डुबकी लगाने का नाम है। पावन प्रकृति के मुस्कुराने का नाम है। नाम तो होलिका के जलकर मरने से भी जुड़ा है। श्रीराम जन्मोत्सव श्रीराम नवमी के आगमन की पावन पृष्ठभूमि के पूर्व काल से भी जुड़ा है। वसंत तो हर वर्ष आता है। पहले भी आता था। पहले के पहले भी। सदियों पहले भी। एक बात नहीं भूलना चाहिए कि यह प्रमुखतः भारत में ही आता है साथ ही कुछ पड़ोसियों के यहाँ भी। शेष दुनिया तो बस इसके बारे में सोच सकती है। सुन भी सकती है। भोग भी सकती है लेकिन भारत में आकर ही। दूर से नहीं। कदापि नहीं। पहले यह जब आने को होता था तो प्रकृति आगमन से पूर्व तैयारी करती थी। बेसब्री से इंतजार करती थी। न केवल स्वयं का बल्कि सकल सचराचर का भी। मगर अ...

धरती-पुत्र खनिक

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धरती-पुत्र खनिक हे कर्मवीर खनिक! जिंदगी और मौत के बीच सुरक्षा नियमों का कवच पहने बल और बुद्धि को संतुलित करके उतर जाते हो धरती की अधखुली गोद में खनिज खोदने ताकि जग रहे मोद में। हे कर्मवीर खनिक! खून और पसीने को मिलाते हो अपने अटल हौसलों में लेकर हाथ में कुदाल करते हो बार - बार प्रहार किसी अन्वेषक की तरह तोड़ देते हो कवच उठा देते हो रहस्यों से पर्दा भर लेते हो मुट्ठी में अनमोल खजाना। हे कर्मवीर खनिक! तुम्हारी मेहनत पर टिका है विकास का सपना तुम्हीं अपने हाथों से गढ़ते हो उद्योग-धंधों की जीवन-रेखा तुम्हारे अतुलित श्रम-सीकर से चलती हैं आवागमन की साँसें तुम हो देश की बेशकीमती पूँजी मगर ध्यान रहे अधिकार है तुम्हें दोहन का मत करना शोषण तभी हो सकेगा पोषण यह आस भी तुमसे है क्योंकि हे खनिक! तुम्हीं हो धरती-पुत्र। डॉ अवधेश कुमार अवध मैक्स सीमेंट, मेघालय संपर्क - 8787573644

बर्तानिया तुम्हारा, हिंदोस्तां हमारा : पं० मेलारम वफ़ा

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बर्तानिया तुम्हारा, हिंदोस्तां हमारा :  पं० मेलारम वफ़ा पाकिस्तानी उर्दू अखबार जमींदार के सम्पादक मौलाना जफ़र अली खाँ ने एक बार किसी नौसिखिये शायर से आज़िज़ होकर उसे समझाते हुए कहा था- तोड़ता है शायरी की टांग क्यों ऐ बेहुनर, शेर कहने का सलीका सीख मेला राम से। सियालकोट (वर्तमान पाकिस्तान) में दीपोके गाँव में 26 जनवरी 1895 को पं० मेलाराम वफ़ा जी का जन्म हुआ। इनके पिता पं० भगत राम थे। परिवार गरीब था इसलिए इनकी प्राथमिक शिक्षा इनके ननिहाल सोबा सिंह गाँव में हुई थी। गाय-भैस चराते हुए इनका बचपन गुजरा। रहट की गद्दी पर बैठकर भी पुस्तकों को पढ़ने का मोह छोड़ नहीं पाते थे। 17 वर्ष की आयु में पहला शेर इन्होंने कहा था तथा इतने कुशाग्र थे कि आठवीं कक्षा में पढ़ते हुए अपने अध्यापक की गलतियों को सुधार देते थे। 10 वीं कक्षा पास करते ही इनकी शादी भी हो गई थी। उर्दू शायरी इनकी लत में शुमार थी। सन् 1922 में ये पं० राम नारायण अरमान दहलवी के शिष्य बन गए। प्राइवेट पढ़ाई करते हुए इन्होंने उच्च शिक्षा पूर्ण की तथा कुछ समय तक खालसा नेशनल कॉलेज लाहौर में उर्दू शिक्षक भी रहे। पं० मेलाराम वफ़ा जी न केवल उच्च...

भारतीय गणतन्त्र के सात दशक

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भारतीय गणतन्त्र के सात दशक परिवर्तन का जोश भरा था, कुर्बानी के तेवर में। उसने केवल कीमत देखी, मंगलसूत्री जेवर में।। हम खुशनसीब हैं कि इस वर्ष 26 जनवरी को 74वाँ गणतन्त्र दिवस मना रहे हैं। 15 अगस्त सन् 1947 को पायी हुई आजादी कानूनी रूप से इसी दिन पूर्णता को प्राप्त हुई थी। अपना राष्ट्रगान, अपनी परिसीमा, अपना राष्ट्रध्वज और अपनी सम्प्रभुता के साथ हमारा देश भारत वर्ष के नवीन रूप में आया था। हालाँकि इस खुशी में कश्मीर और सिक्किम जैसे कुछ सीमावर्ती या अधर में लटके राज्य कसक बनकर उभरे थे। देश को एक संविधान की जरूरत थी। संविधान इसलिए कि किसी भी स्थापित व्यवस्था को इसी के द्वारा सुचारु किया जाता है। संविधान को सामान्य अर्थों में अनुशासन कह सकते हैं।  संविधान अनुशासन है, यह कला सिखाता जीने की। घट में अमृत या कि जहर है, सोच समझकर पीने की।। 2वर्ष 11 माह 18 दिन के अथक और अनवरत प्रयास से हमारे विद्वत जनों ने डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में संविधान बना लिया था। लागू करने के लिए इतिहास में पलटकर उस दिवस की तलाश थी जब भारतीयों ने समवेत स्वर में पूर्ण स्वराज्य की माँग की थी। सन् 1929 में कांग्...

नजर के तीर,,( गजल)

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, नजर के तीर,,( गजल)  इन कजरारी आंखों ने, मुझपे ऐसा वार किया बच ना सका मैं उस कातिल से, जिसपे मैने इतवार किया प्यार की ज्योति जलाई मैंने, खुन से सिंचा यह पौधा,  जब जब पङी जरुरत उसको, सतंभन सौ बार किया रुह में मैरी सिमट गयी वो, उन यादों की वो घङियां   लिया पैरों की बन बैठी, जीना मेरा दुश्वार किया  निंदियाँ ना आती, जिया ना लागे, ऐ कातिल तेरे वो वादे,  मदन अकेला कहाँ गयी वो, जिससे तुने प्यार किया     मदन सुमित्रा सिंघल पत्रकार साहित्यकार शिलचर असम  मो.9435073653 ###############################      (2)  , बिजली कहाँ गिरोगी,,( गजल)  ऐ बिजली तुम कहाँ पे गिरोगी, बतादो हमें हम यहाँ रहते हैं घनघोर अँधेरा घटाटोप छायी, श्याम वर्ण सी अंधियारी रातें देती हिलोरें शर्द ऋतु सी, बताओ हमें हम क्यों सहते हैं खो जाती हो तुम किस दुनिया में, नजर ढुंढती है कहाँ खोई तुम होती तसल्ली दिदार तेरे, जब जी भर भर देख लेते हैं तङफाओ ना आओ आगोश में, अरमां हमारे पुरे करो तुम,  मदन सिंघल ऐ चमक चांदनी अब, आने को हम खुद कहते हैं। मदन सुमित्रा...

नेताजी से बड़ा नेताजी का नाम

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नेताजी से बड़ा नेताजी का नाम -डॉ अवधेश कुमार अवध दिया था गर्म खूं हमने कि तुम आजादी लाओगे। जुबां के हो धनी तुम, इसलिए वादा निभाओगे। मगर क्यों दी दरिंदों को आजादी की दुल्हन लाकर ? हुआ क्या माज़रा ऐसा, कहो तुम कब बताओगे? सदियों से मकड़जाल में फँसाये रखने की हुनर रखते थे। अमरबेल की तरह सहारे को ही चूसकर निष्पाण करने का महारत हासिल था। अपने स्वार्थ के लिए न्याय की आड़ में अन्याय को बढ़ावा देने में वे दक्ष थे। बाँट - बाँटकर किसी का भी बंटाधार करने की कला वंशानुगत थी। लड़ते कम थे और लड़ाते ज्यादा थे। अवसरवाद के प्रबल हिमायती थे वे, इसीलिए तो उनके साम्राज्य में सूर्य अस्त नहीं होता था। ये ब्रितानी ही थे जिनका आधिपत्य दुनिया के ऊपर था। सोच पाना भी असम्भव था कि इनके पंजों से सही सलामत मुक्ति मिल सकती है! दुनिया के तमाम देश छटपटा रहे थे आजादी के लिए। उनमें से भारत भी एक था जहाँ क्रान्ति की ज्वाला बार - बार वन की आग की तरह फैली और स्वयं की राख तले बुझ गई। नौ दशकों के लगातार कमोबेश शहादत के बावजूद भी आजादी से हम मरहूम थे.......दूर थे। शहीदे आजम भगत सिंह, चन्द्रशेखर, रामप्रसाद बिस्मिल, पंजाब केसरी लाला ला...

कैबिनेट मंत्री सर्बानन्द सोनोवाल को राष्ट्रवादी पुस्तक इनसे हैं हम भेंट की गई

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कैबिनेट मंत्री सर्बानन्द सोनोवाल को राष्ट्रवादी पुस्तक इनसे हैं हम भेंट की गई गुवाहाटी। पुस्तक मेले के 33वें संस्करण में असम के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और कैबिनेट मत्री पत्तन, नौवहन, जलयान एवं आयुष मत्रालय भारत सरकार माननीय सर्बानंद सोनोवाल को राष्ट्रवादी पुस्तक इनसे हैं हम भेंट की गई। पुस्तक की सह लेखिका अवनीत कौर दीपाली एवं सह लेखिका कुमुद शर्मा ने इनसे हैं हम भेंट करते हुए माननीय सोनोवाल जी के प्रति आभार व्यक्त किया।  दोनों सह लेखिकाओं ने बताया कि माननीय मंत्री जी ने अपना कीमती समय देते हुए इस पुस्तक के बारे विस्तृत जानकारी ली और इनसे हम की भूरि-भूरी प्रशंसा की। देश के लिए आवश्यक है कि अपने महान गुमनाम पूर्वजों को भी याद करते हुए प्रेरणा ले जिन्होंने अपने अभूतपूर्व बलिदान से देश को गढ़ा है। ध्वातव्य है कि इस पुस्तक में देश के 51 लेखक सम्मिलित हैं। यह जानकारी प्रधान  संपादक डॉ अवधेश कुमार अवध ने दी।