छोटे टुकड़े अलका जैन

वो पत्थर के छोटे छोटे टुकड़े
जिन्हें  हम सितोलिया पुकारते
उन सात पत्थर की कीमत अनमोल
जब मुल्याकं किया बुढ़ापे में आदमी ने
वो महफ़िल जो बेमक़सद सजती रही
मेरी आपकी हमारी चोखट पे आये दिन 
जिन महफ़िलो में फजीते रहते थे खाने के
जिन महफ़िलो में लिबास को तवज्जो नहीं
वो शुद्ध यारी दोस्ती की महफ़िल अनमोल
याद आते हैं वो  दिन अनमोल यारी दोस्ती
यार के एक आवाज पर जान देने की आरजू
वो सिगरेट के छोटे छोटे खश खींचना चुपके
वो दारु पीने की जुगाड करना चुपके चुपके
वो हसीना को बेवजह  घूरना फिरके कसना
वो बेफिक्री जाने किधर गुम गई जिंदगी से
वो पत्थर के छोटे छोटे टुकड़े citolia
Jindagi tera khee khatam aba mrtu
Bola rahe citolia

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पाँच प्रेम कविता

प्रेम कहानी रिश्तें बदलतें हैं...

हिंदी भाषा का प्रसार प्रचार