धरती का मिलन प्रेम कविता

 
                   कवि मारोती गंगासागरे


काले-काले बादल छाँऐ
धरतीने मिलन गीत गाऐ
हवा ने सरगम छेड़ दी हैं
पेड़ पौधे झूम उठे...|

तप-तपके घायल धरा हुई थी
नभ के विरह में जलने लगी थी
आज पूरी हुई ओ तपस्या
नभ आए जल रूपी मिलने...|

  • धरा ने बूँद-बूँद को अंतर मन मे समाया
मिलन की दुगनी खुशी दिखाई
ओ यौवन से सजने लगी थी ...|

      

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