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सियाराम

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हे शक्ति पुंज!हे पूर्णकाम हे अविनाशी,घट घट वासी तुम सदय विराजो सियाराम। हे कृपासिंधु!हे करुणाकर, हे जगत नियंता दीनबंधु बस जाए हम सबके हृदयों में पावन पुनीत तव छवि ललाम। जग संचालित हो तुमसे ही जग प्रतिपालित हो तुमसे ही तुम सदय विराजो सियाराम। निज ज्वाल भरो हम सबमें तुम यह विश्व प्रदीपित हो जिससे तम रह न सके इस वसुधा पर फैले प्रकाश जय सियाराम तुम सदय विराजो सियाराम। स्वरचित, मौलिक डॉ मधु पाठक राजा श्रीकृष्ण दत्त स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जौनपुर, उत्तर प्रदेश।

अवधपति! आओ

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अवधपति! आओ हे राम  मुझे  अपना लो। निज चरणों में बैठा लो।।         हे    राघव     अन्तर्यामी।         तुम हो दीनन के स्वामी।। हे पुरुषोत्तम     योगेश्वर। तुमसे समस्त सचराचर।।         जग   की  पीड़ा  के हर्ता।         तुम सकल कर्म के कर्त्ता।। तुम हो ब्रह्माण्ड नियंता। भक्तों - संतों  के  कंता।।         तुम   प्राणवायु   के   दाता।         तुम हो विधि और विधाता।। हे अगम  अगोचर  अक्षय। जै  जै जै जै जै जय जय।।        जग में  सुख-शान्ति बनाओ।        सुन अवध,अवधपति आओ।। डॉ अवधेश कुमार अवध 8787573644

शीर्षक-- गोमती के तट

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विधा-  लघुकथा =========== शीर्षक-- गोमती के तट =============== शीतल रोज विद्यालय जाती तो उसे नदी पार करना होता था। वह अपनी साइकिल धीरे करना चाहती पर नहीं करती क्योंकि समय से विद्यालय पहुंचना होता था। शीतल बहुत ही शिष्ट और संस्कारी लड़की है। माता-पिता तथा परिवार से मिली सीख  और विद्यालय में गुरूजनों से‌ मिला सद्ज्ञान उसे समय का पाबंद बनाए रखता। प्रतिदिन गोमती नदी पार कर विद्यालय जाती तो उसे लगता नदी के आसपास कुछ अलग तरह की स्थितियां हैं ।एक तरफ मंदिर हैं जहां श्रद्धालु पूजा पाठ में लगे दिखते जबकि दूसरी तरफ कुछ झुग्गी-झोपड़ियां दिखाई पड़तीं जिसमें  कुछ ग़रीब परिवार रहते थे।जो बांस की टोकरी,डलिया आदि सामान तैयार करते बेचते और उसी से अपने परिवार का पेट पालते। दूसरी तरफ कुछ ऊंचे-ऊंचे भवन दिखाई पड़ते। बड़ी बड़ी गाड़ियां खड़ी दिखाई देतीं। अक्सर वह मन में सोचती सड़क के दोनों तरफ़ का दृश्य कितना अलग है और जीवन का आधार भी अलग है जबकि गोमती और उसके तट तो सबके लिए एक जैसे हैं ।पर इंसानी दुनिया जो उसने खुद गढ़ी है उसमें सबके लिए अलग-अलग व्यवस्थाएं क्यों हैं जबकि हर इंसान एक सा दिखता ह...

नवरात्रि की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

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आप सभी को पावन  नवरात्रि की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। मां आदिशक्ति आप सब पर सदैव अपनी कृपा बनाए रखें। *मातारानी के श्रीचरणों में अपने भाव पुष्प अर्पित करती हूं।* 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺 "मातु वंदन तुम्हारा और पूजन करें भरके श्रद्धा से मन नित नमन हम करें। सुनलो अरज मेरी अम्ब विनती करें ग़र लड़ें शत्रु से तो विजय ही करें। दे दो वरदान हमको हे वरदायिनी हे सुता शैल की मातु कात्यायनी। कर कृपा अपनी सबको उबारोगी तुम सत्य की जीत को खल को मारोगी तुम। इस जगत में तो वैसे ही ग़म कम नहीं काम और क्रोध के अब सितम कम नहीं। है मनुजता बहुत ही पशोपेश में अम्ब होता है क्या देखो इस देश में। बेटियां जो की प्रतिछवि तुम्हारी ही हैं कुछ नराधमों के लिए भारी ही हैं। कोख में उनको कैसे सुला देते हैं? ग़र जनम लीं तो कैसे रुला दते हैं? मातु दुष्टों को अब कब संहारोगी तुम ? जो पशु हैं बने कब उद्धारोगी तुम? ये कोरोना भी असुरों की ज्यों टोलियां अम्ब जग को बचालो हम फैलाते झोलियां। डॉ मधु पाठक, हिन्दी विभाग राजा श्रीकृष्ण दत्त स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जौनपुर उत्तर प्रदेश।

निशदिन ही आना होता है |

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सुप्रभात  बागों में नूतन फूलों का, खिलकर मुसकाना होता हैl अम्बर में प्रात: सूरज का, निशदिन ही आना होता हैll सपने बुनकर सो जाते जो, उनको जग जाना होता हैl अम्बर में प्रात: सूरज का, निशदिन ही आना होता हैll थककर  चूर चाँद तारों का, नभ से फिर जाना होता हैl अम्बर में प्रात: सूरज का, निशदिन ही आना होता हैll बिगुल फूँककर कर्मभूमि में, कौशल दिखलाना होता हैl अम्बर में प्रात: सूरज का, निशदिन ही आना होता है।। डॉ अवधेश कुमार 'अवध'

राहुल सांकृत्यायन

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हिन्दी साहित्याकाश के अद्भुत, अपूर्व, अविस्मरणीय,चिरदीप्तिमान नक्षत्र, महान् घुमक्कड़,महाज्ञानी, महापंडित राहुल सांकृत्यायन जी की आज जन्म जयंती है।उनका साहित्य सृजन अपनी विपुलता में इतना विस्तृत है कि उसे आसानी से समेट पाना मुश्किल है।वे एक अद्भुत यायावर होने के साथ-साथ बहुभाषाविद,गहन अनुसंधेता, दार्शनिक, इतिहासकार, कथाकार, यात्रा वृत्तांत साहित्यिक विधा के पितामह थे। वे विपुल साहित्य के समर्थक थे। उनकी महत्वपूर्ण कृतियां--" वोल्गा से गंगा", "जय यौधेय", "सिंह सेनापति","दिवोदास","मध्य एशिया का इतिहास,""बौद्ध दर्शन", "विश्व की रूपरेखा", "दर्शन दिग्दर्शन", "वैज्ञानिक भौतिकवाद", "इस्लाम धर्म की रूपरेखा", "मेरी लद्दाख यात्रा", "मेरी चीन यात्रा","रूस में पच्चीस मास", "हिन्दी काव्य धारा", "दक्खिनी हिन्दी काव्य धारा","सरहपाद दोहा कोश","भागो नहीं दुनियां को बदलो", "घुमक्कड़ शास्त्र",आदि महत्वपूर्ण कृतियां हैं। "स...

जख्मी औरत

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जख्मी औरत जा बेटा एक ईंट ले आ कहीं से। बड़ी जोर से मारा है पुलिस ने। बड़ा दर्द हो रहा है। ईंट को गर्म कर के सिकाई करूंगा। दादा बोले। लड़का ईंट लेने चला गया। तुम से कहीं थी पुलिस मार रही हैं मत जाओ । बेटा बोला। अब हमने सोचा हमको काहे मारेगो पुलिस ? हमनै चोरी थोड़ी की है। पर ये पुलिस मार काहे रही है बेटा?  बता रहे हे कोई छूत की बीमारी फैली है। मुन्ना बोला। तो बीमारी क्या हमने फोलाई जो हमें मारा। अब पुलिस से कोन पूछे। कितने दिन तक बाहर नहीं निकल सकते?  पता नहीं। ऐसा पहली बार है।  तो आपने गांव वापस चलें। कैसे जा सकते हैं? बस रेल सब सुनने में आया है कि बन्द है। हमारी तो इतनी उम्र हो गई मगर ऐसा कभी ना तो देखा ना सुना। झोपड़ी में आटा है?   हां है तो एक दो दिन चल जायेगा। फिर देखे क्या होता है। बाकी तो सब ठीक ही है मगर  लूगाई की चिंता है। उस के पूरे दिन चल रहे हैं कभी भी बच्चा हो सकता है। बस रेल नहीं चलेंगी तो हम सब तो पैदल चल देंगे मगर औरत जात पेट से है उसका  क्या करे?  वो जिस दाई के भरोसे आई थी शहर ‌वो बोल रही है ये ही हाल रहा तो वो  तो चली जितेगी। ...