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नर्मदा मोत्सव

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सभी देशवासियों को नर्मदा जयंती की शुभकामनाएं। सबसे सुंदर सबसे न्यारी, देवों ने चरण पखारी है संपूर्ण जगत की नदियों में, केवल वो चिरकुंवारी है जिसके दर्शन करने मात्र से, हम पाप मुक्त हो जाते हैं नदियों में सर्व श्रेष्ठ नर्मदा, मॉ मैकल राज दुलारी है। होती परिक्रमा मॉ रेवा की, पर नदियां सभी पवित्र हैं बही स्कंद पुराण के रेवाखण्ड में, ऋषि मार्कण्डेय जी ने बात कही हर अवतार में प्रभु नारायण, स्तुति मॉ की गाए हैं चिर कुंवारी नर्मदा माता, पूरब से पश्चिम को हैं बही। लगाने को तो संगम में, सभी डुबकी लगाते हैं कभी गंगा कभी यमुना, कभी सरयू में जाते हैैं परिक्रमा करते श्रद्धालु, समर्पित श्रद्धाभाव से दर्शन कर मां रेवा की, धोकर पाप जाते हैं। कितनी सुंदर घाटी यहां की, मनमोहक तस्वीर है नाम अमरकंटक है जिसका, संतों की तपोभूमि है सोन, जुहिला और पवित्र मॉ, नर्मदा नदी का उद्गम है दृश्य अलौकिक सजर यहां पर, ऐसा लगे कश्मीर है। हे ! उमारूद्रांगसंगभूता, चित्रोत्पला माँ शंकारी, हे ! माँ मैकलसुता, त्रिकूटा, सुन विनती एक हमारी, तेरे सम्मुख रहूँ माता मैं, तेरा ही नित ध्यान करुं, नर्मदाष्टक, नर्मदास्त्रोत गाऊँ मैं बार...

अधूरे सपने

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अधूरे  सपने            --------------------  ज़माने से चली आयी यह रीत पुरानी है। रात और दिन का मिलन कभी होता नहीं । ऐसा नहीं के इस बात से वे बेखबर नहीं  फिर भी एक दूजे का साथ इन्होंने छोड़ा नहीं  दुनिया निहारे इस अनोखे मेल को , और सोचें कुदरत के खेल को  जिसने साथ तो दिया एक दूजे का पर मिलन नहीं । एक दूजे के बिना ये दोनों अधूरे  फिर भी जी रहे हैं दोनों, एक दूजे के सहारे  आशा लिये मन में , के होंगे उनके सपने पूरे । बढ़ रहे हैं वे दोनों शाम सहर की ओर धीरे धीरे श्रीमती शीला भनोत  हैदराबाद तेलंगाना

रिश्तें

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शीर्षक  रिश्तें ++++++ रिश्तें   खून के , रिश्तें मिलन के,  रिश्तें माँ के, सौतेली माँ के,रखैल के।  माँ धाय माँ के सब प्रकार के रिश्ते,  रिश्ते दोस्त के, रिश्तें भक्तों के  रिश्ते देश विदेश के रामायण काल से आज तक   सबके व्यवहार पढ़ा,परखा, सच्चे ,कच्चे, पके,ठगे रिश्तें। कर्ण की माँ निर्दयी  कायर कामान्ध । भरत की माँ  अस्थिर, मामा शकुनि  प्रतिशोध, विभीषण ईमानदारी पर द्रोही, मन में नाना विचार, सर्वैश्वर की लीला। भीष्म का बलात्कार, विचित्र वीर्य नपुंसक तीन अबलाएँ, विदुर से  अछूत का व्यवहार। पांडवों के विविध पिता, भीष्म प्रतिज्ञा, अति विचित्र नाते रिश्तें। ईश्वर की लीला अपूर्व अद्भुत। मानव का सच्चा रिश्ता परमेश्वर। जब  चाहते अपने आप परम पद देते। बाकी रिश्तों में   विश्वसनीय-अविश्वनीय होते। ईश्वरमानव सृष्टित अति स्वार्थ। के  सोनिया मंदिर,मोदी मंदिर , जयललिता मंदिर,अभिनेता अभिनेत्री मंदिर। मानव के स्वार्थ मंदिर। न समरस सन्मार्ग। इस करें हैं  प्राकृतिक मंदिर सूर्य चंद्र,हवा,पानी,अग्नि, ये ही समदर्शी भगवान।बाकी ...

बादल चाचा (बाल कविता)

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बादल चाचा (बाल कविता) बादल  चाचा , बादल  चाचा , तू हवा  के  साथ  कहां जाता। बादल चाचा  के  साथ है पानी, किताब  में पढ़ा हूं  तेरी कहानी। जब भी तू आता है मनमानी से, तुझे मैं जाने कहता मेहरबानी से। बिना काम के कभी आ जाता है तू, कितने फ़सलों नष्ट कर जाता है तू। खेत खलिहान  पे दया -दृष्टि रखों, अपने मनमानी से कभी मत चलों। तुझ से मानव, दानव दोनों डरते हैं, जहां तू घूमता है वहां ना हम रहते हैं। तेरे  बिना  धरा हरी  हो  ना सकती, फिर धरा में पौधें भरी हो ना सकती। नहीं सुखार लाएं,नहीं ज्यादा पानी बादल चाचा तुझे होगा मेहरबानी। अनुरंजन कुमार "अंचल"  साहित्यिक नाम -:कुमार अंचल"      कवि/शायर       अररिया,बिहार

रास्ते फिसल रहे हैं : चिन्ता से चिन्तन तक

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रास्ते फिसल रहे हैं : चिन्ता से चिन्तन तक                      डॉ अवधेश कुमार अवध रास्ते फिसल रहे हैं। प्रतिस्पर्धा पर संघर्ष की जीत के लिए फिसल रहे हैं। ये यकायक नहीं फिसलने लगे। पहले भी फिसलते थे। युगों से फिसल रहे हैं। वर्षों से फिसल रहे हैं। अब पहले से तेज फिसल रहे हैं। समय से आगे निकलने की होड़ में फिसल रहे हैं। बस मैंने पहले सोचा नहीं था। कुछ सोचा भी था। राही की तरह सोचा था। असोचन की मुद्रा में सोचा था। ठीक से नहीं सोचा था। रास्ते की तरह नहीं सोचा था। मजदूर की तरह नहीं सोचा था। मजबूर की तरह भी नहीं। नहीं सोचा था किसान की तरह भी। रास्ते पर फिसलते राही की तरह नहीं सोचा था।  कवि बनकर नहीं सोचा था। लेखक के नजरिये से नहीं सोचा था। उमेश प्रसाद सिंह के हृदय से नहीं सोचा था। सोच भी नहीं सकता। कभी भी नहीं। कदापि नहीं। ललित निबंध के सशक्त हस्ताक्षर डॉ उमेश प्रसाद सिंह "रास्ते फिसल रहे हैं" में बहुतों को फिसलते देखे हैं। कइयों की नज़रों से अलग-अलग देखे हैं। शिवजी के धनुष को टूटते देखे हैं। डिप्टी साहब, हेडमास्टर, मास्टर और बच्चों की न...
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शीर्षक - *भारत भूमि वंदन - शत्रु द्रोह मर्दन* भारत भूमि का कण-कण हमें प्राणों से प्यारा है.... एक एक रज कण में सुवासित गौरव गर्व हमारा है.... भारत कीर्ति कथा, वैभव गढ़ने में बीते मेरा जीवन सारा है रक्त की बूंद-बूंद में, रोम-रोम में बना तेरा ही आशीष सहारा है कोटि सूर्य सी प्रभा तुम्हारी ,निशानाथ नित वंदन करें तुम्हारा रत्नाकर नित चरणोदक लेते , हिमालय सजाये किरीट तुम्हारा धन्य धन्य हो जाते मलय मारुत के झोंके ,पा कर स्पर्श तुम्हारा स्वर्ग के सभी देव तरसते , करने आॅ॑चल का अमृत पान तुम्हारा पर ! माॅ॑ हमारे ही कुछ भाई बंधु की करनी झुका रही है शर्म से शीश हमारा....... माॅ॑! आज पीड़ा से बहुत व्यथित हूं , तेरे ही कुछ कपूत बन रहे हैं शत्रु सहारा छद्मवेष धारण किये हैं कायर ,बन गया है उनका बल ,अब छल छद्म सहारा हृदयों में फफक रही चिंगारी , शिराओं में उमड़ घुमड़ रहा है रक्त हमारा उठ रही उदधि सी अंतर ज्वाला , घुमड़ घुमड़ रहा है आक्रोश हमारा साक्षी है योगेश्वर का गीता ज्ञान , हमारे अंतरतम का मोह तोड़ दो अपने भी हों अगर अधर्म पर , राष्ट्र धर्म की रक्षा हित जीवन रथ उनका मोड़ दो जो ख़रोंच लगायेगा तुझ पर ...

बजट और विपक्ष

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शीर्षक - ‌   बजट और विपक्ष बजट में काश्मीर से कन्याकुमारी कटक से कारगिल , लक्ष्य विकास का तय हुआ विपक्ष की नज़र में विकास पर घमासान हुआ,सब दल सिकुड़ रहे भगवा का ही जय हुआ जैसे प्रभात के आगमन पर मुर्गे की बॉ॑ग ज़रूरी है प्रजातंत्र की रखवाली को विपक्ष का विरोध जरूरी है पर राष्ट्र हित के मुद्दों पर सहमति बहुत जरूरी है पर भारत में विपक्ष का सत्ता मोह में , मानना राष्ट्र समर्पण गैर जरूरी है अभी किसान गाॅ॑व का हितैषी बजट का प्रावधान हुआ मानो विपक्ष भारत का जैसे अचानक हलाल हुआ दुनियां रही त्रास भीषण करोना संकट में अग्रसर देश  हुआ भारत का सम्मान बड़ा स्वदेशी वैक्सीन का निर्माण हुआ पैंतीस हजार करोड़ फ्री वैक्सीन लगाने का ऐलान हुआ विपक्ष का एक और मुद्दा सरेआम बेजार हुआ संकट में अमीर गरीब युवा उद्यमी है देश के साथ खड़ा हुआ विपक्ष बुन रहा था सपना भविष्य का फिर चकनाचूर हुआ रक्षा शिक्षा इन्फ्रास्ट्रक्चर का भी बजट में सम्यक आगाज हुआ षणयंत्र दिखा विपक्ष को संसद में हाराकिरी और हंगामा खड़ा हुआ किसान की माला जपी , बेरोजगारी के गोले चले, अदानी अंबानी का हाथी दिखाया, बेकार हर उपाय हुआ..... ग...