बोलती दिवारे...
सुना-सुना सा... वह मकान जहॉ मैं बेचैन होकें बैठा था? बोलती थी वह सुनी कमरों की सुनी सी दिवारें एक दूसरें कों मजें में दर्द बताती मैं भी सुनता उसके साथ बेचैन बनता वह मूझे अपना दर्द सुनाती मैं भी सुनकर उसें बताता मेरी बेचैनी मैं भी सुनाता काश यह दिवारे सुनती तो मैं भी मेरी कहानी सुनाता पर लगता है बेजान होकर भी जान है, दिवारो में इसीलिए मैं उसकी बेचैनी समझ पाया,और कहेने लगा बोलती है सुनी दिवारे....