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सपनों में आना छोड़ दे

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सपनों में आना छोड़ दे। चुराने वालों की, हम नींद भी चुरा ले। गर ओ सपनों में,आना छोड़ दे । राजदार उनको, बना ले हम अपना। गर ओ दिल, चुराना छोड़ दे।  बड़े मासूम बने बैठे हैं। जैसे के अनजान है दिल्लगी से। हम दिल का लगाना छोड़ देंगे, गर ओ नजरों से छूना छोड़ दे। यूं ही चलता रहे, रातभर सिलसिला बातों का।  सुकून से हम भी सो पाए, गर ओ रातों को जागना छोड़ दे। ©® अस्मिता प्रशांत "पुष्पांजलि" भंडारा, 9921096867

मंगलमय हो नववर्ष उनके लिए भी

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शीर्षक - मंगलमय हो नववर्ष उनके लिए भी  घुट - घुटकर जो जीते हैं , विष अश्रुओं का पीते हैं , नहीं खोलते हैं हृदय अपना , उधड़न पीड़ाओं की ख़ुद ही सीते हैं , मंगलमय हो नववर्ष उनके लिए भी । दंश कटु वचनों का जो सहते हैं , अलग होकर समाज से रहते हैं , ठण्डी रखते हैं आग मन की , किसी से व्यथा न अपनी कहते हैं , मंगलमय हो नववर्ष उनके लिए भी । ठोकरें दर - दर की जो खाते हैं , मूल्य निज आदर्शों की चुकाते हैं , श्रेष्ठ होकर भी हेय हैं जो सबकी दृष्टि में , अपयश , अपमान ही सबसे पाते हैं , मंगलमय हो नववर्ष उनके लिए भी । जो निर्बल हैं , दीन - हीन हैं , बंधु - बांधव , सहचर विहीन हैं , कर्तव्यों के हृदय पर भार हैं जो , कीच युग की , वेदना - मलिन हैं , मंगलमय हो नववर्ष उनके लिए भी । मुँह फेर चुके हैं जिनसे जगदीश , झुका रहता है हमेशा जिनका शीश , नहीं गले से जिनको लगाता है कोई , नहीं शीश पर हाथ रख देता है आशीष , मंगलमय हो नववर्ष उनके लिए भी ।                            -  मुकेश शर्मा          ...

राखी बनाम वचन पर्व

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राखी बनाम वचन पर्व थाल सजाकर बहन कह रही,आज बँधालो राखी। इस राखी में छुपी हुई  है, अरमानों की  साखी।। चंदन रोरी अक्षत मिसरी, आकुल कच्चे-धागे। अगर नहीं आए तो  समझो, हम हैं बहुत अभागे।। क्या सरहद से एक दिवस की,छुट्टी ना मिल पायी? अथवा कोई और वजह है, मुझे बता दो भाई ? अब आँखों को चैन नहीं है और न दिल को राहत। एक  बार बस आकर भइया, पूरी कर दो चाहत।। अहा! परम सौभाग्य कई जन, इसी ओर हैं आते। रक्षाबंधन के अवसर पर, भारत की जय गाते।। और साथ में ओढ़ तिरंगा, मुस्काता है भाई। एक साथ मेरे सम्मुख हैं, लाखों बढ़ी कलाई।। बरस रहा आँखों से पानी,कुछ भी समझ न आये। किसको बाँधू, किसको छोड़ू, कोई राह बताए? उसी वक्त बहनों की टोली, आई मेरे द्वारे। सोया भाई गर्वित होकर, सबकी ओर निहारे।। अब राखी की कमी नहीं है और न  कम हैं भाई। अब लौटेगी नहीं यहाँ से, कोई रिक्त कलाई।। लेकिन मेरे अरमानों को, कौन करेगा पूरा? राखी के इस महापर्व में, वचन रहे न अधूरा।। गुमसुम आँखों को पढ़ करके,बोल उठे सब भाई। पहले वचन सुनाओ बहनों, कुर्बानी ऋतु आई।। बहनों ने समवेत स्वरों से, कहा सुनो रे वीरा ! "धरती पर कोई भी नारी, न ...

बारिश पर रचनाएँ

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   स्वागत है आप सभी का इस अंक में बारिश सभी पसंद होती है | बारिश की खुशी शब्दों में बयां करने की खुशी तो लाजवाब होती है एक लेखक के लिए और कवि के लिए भी ... उसी खुशी को व्यक्त करने के लिए इस अंक को बारिश विषय दिया था और इसमें आपकी रचनाओं ने सच्च में  बारिश की खुशहाली को दोगुणा किया है | आप सभी बारिश की ढेर सारी शुभकामनाएं मारोती गंगासागरे नांदेड़ महाराष्ट्र से *****************************************  *बूंदों का मौसम* *हुई विदा अब ग्रीष्मा रानी रिमझिम आई ऋतु सुहानी हर्षित धरती का कोना कोना टिप-टिप बरस रहा है पानी *लुभा रहा ये महिना सावन खुशियों से भर जाते दामन उत्सवों से भरा माह यह सज जाते हैं हर घर आँगन *बरखा रानी की अगुवाई मोर पपीहों की शहनाई कारे बदरा थिरक रहे हैं करती चपलाएँ रोशनाई *हलधर खेतों को धाए हैं गोरी मुन्नू भी संग आए हैं झोली में बीज भर लाए हैं हाँ,मोती ज्यों बिखराए हैं *चारों ओर हरियाली छाई बाली भुट्टों ने ली अँगड़ाई ताल नदी भी झूम रहे हैं नौकाविहार की बारी आई *नहरें बनी गाँव की गलियाँ चुन्नू मुन्नू रानी व मुनिया छप-छप करते हैं तैराते कागज की रंगी...

होली पर रचनाएँ

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   होलो की आप सभी को ढेर सारी शुभकामनाएं | स्वागत करता हूँ आप सभी का मेरी रचना के इस मंच पर |     भारतीय संस्कृति में बहुत से त्योहार मनाएँ जाते उन में महत्वपूर्ण और एकता को बांधे रखने वाला त्योहार होली का हैं | साथ ही होली का जब दहन होता है तो उसमें सभी नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट कर सकारात्मक सोच , पहल का अंगीकार करना ऐसी कही धारनाएँ होली का त्योहार मनाने के पीछे हैं |         हम भी अपने साहित्यिक जगत में होली इस विषय पर कई रचनाकारों के रचनाओं का संचयन किया और इस तरह होली मनाने का प्रयास किया...             रंगों में रंग प्रेम रंग      प्रेम रंग सा दूजा रंग ना कोई      इस रंगमे रंगना चाहे सभी      फिर भी इससे द्वेष रखते सभी आओ यह द्वेष मिटाए  होली में लाल गुलाल उड़ाएँ सभी रंग छोड़कर एकता में हम रंग दिखाएँ... इसी तरह होली का त्योहार मनाएँ संपादक मारोती गंगासागरे नांदेड़ महाराष्ट्र से विषय: होली   होली मिलन-मधुर मिलन होलिका दहन में, सवाल उठता ज़हन में, क्...

बारिश हो रही हैं

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बारिश हो रही हैं बारिश हो रही हैं, तेरी याद आ रही हैं | धरा के आँचल में..., बर्खा गुनगुना रही हैं | य सारे जहाँ में खुशी हैं , दिलबर थोड़ीसी दूरी हैं | इस मौसम के बहारों में..., आओ ना साथ चलते हैं | दिल का दरवाजा खोलके , सुनो बारिश भी गा रही हैं | प्रेम रंग में डूबकर अब , ओ भी मस्ती में आ रही हैं | मिट्टी का गंध उढ़ा हैं , हवा में फैला चारो ओर | मिलन हुआँ हैं प्रकृति का , देख बारिश में भीगा हैं तन | मारोती गंगासागरे 

गोष्ठी व पुस्तक विमोचन सम्पन्न

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गोष्ठी व पुस्तक विमोचन सम्पन्न गुवाहाटी। मेलाराम वफ़ा साहित्य अकादमी के तत्वाधान में गुवाहाटी असम साहित्य सभा, ज्योति अग्रवाल हाल में मेलाराम वफ़ा साहित्य अकादमी की दूसरी मासिक गोष्ठी समारोह पूर्वक सम्पन्न हुई। कार्यक्रम का प्रारम्भ सरस्वती वंदना तथा अतिथि गण द्वारा दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। प्रसिद्ध शायर, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और पत्रकार स्व. पंडित मेलाराम वफ़ा को श्रद्धापूर्वक याद किया गया। मेलाराम वफ़ा साहित्य अकादमी के सौजन्य से डॉ चंद्रकांता शर्मा जी की पुस्तक "युगे- युगे शक्ति अपरूपा" का विमोचन भी हुआ। गोष्ठी के मुख्य अतिथि आ. दयानंद पाठक जी, अति विशिष्ट अतिथि आ. मुक्ता बिस्वास, एवं विशिष्ट अतिथि आ.मंजरी शर्मा रहीं। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता आ. नंदा शर्मा जी, आ. सौमित्रम जी और  ब्रह्मपुत्र साहित्य मंच के अध्यक्ष किशोर रहे। श्री जैन ने पुस्तक से जुड़ी नारी शक्ति के कई उदहारण दिए और बताया कि वर्त्तमान युग में महिलाओं ने अपनी शक्ति और मज़बूती का परिचय भी समय समय पर दिया है। वक्ताओं ने अपने वक्तव्य में नारी की सहनशीलता, समरसता और धैर्य को पुरुष से बढ़कर बताया। पुस्...