श्रद्धेय विनायक दामोदर सावरकर

श्रद्धेय विनायक दामोदर सावरकर यह एक व्यक्ति मात्र नहीं, एक संस्था मात्र नहीं अपितु एक अक्षय विचारधारा का नाम है। वह विचारधारा जो गुलामी की स्याह कारा में रहकर भी आजादी का लौ जला सकती है। वह विचारधारा को गुरुगोविन्द सिंह की तरह अपने समस्त परिजनों को बलिवेदी के निमित्त न्यौछावर कर सकती है। वह विचारधारा जो उस भविष्य के चलचित्र को देख सकती है जिसे जनसाधारण की नंगी आँखें कभी देख नहीं पातीं। विश्वविद्यालयी डिग्रियों से निर्मित विवेक कभी समझ नहीं पाते। वीर सावरकर का सबसे स्तुत्य कार्य रहा 1857 के संग्राम को *प्रथम स्वातन्त्र्य समर* नाम देना। यह दुनिया की वह पुस्तक है जो छपने से पहले ही प्रतिबंधित कर दी गई थी। यह जलवा रहा सावरकर जी की लेखनी का। आज यह पुस्तक विश्व की कई भाषाओं में उपलब्ध है जबकि प्रकाशन के समय समस्त ब्रितानी हुकूमत ने समस्त अंग्रेजी, हिंदी और मराठी प्रेसों को बंद करा दिया था। लाल लट्टुओं का मानना था कि सावरकर जी कि पुस्तक इन तीन भाषाओं में ही निकल सकती है। हकीकत यह है कि उस समय के तमाम क्रान्तिकारियों ने अलग अलग भाषाओं में अनुवाद करके प्रकाशन का बीड़ा उठा लिया था। इस ...