संदेश

जनवरी, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

धरती-पुत्र खनिक

चित्र
धरती-पुत्र खनिक हे कर्मवीर खनिक! जिंदगी और मौत के बीच सुरक्षा नियमों का कवच पहने बल और बुद्धि को संतुलित करके उतर जाते हो धरती की अधखुली गोद में खनिज खोदने ताकि जग रहे मोद में। हे कर्मवीर खनिक! खून और पसीने को मिलाते हो अपने अटल हौसलों में लेकर हाथ में कुदाल करते हो बार - बार प्रहार किसी अन्वेषक की तरह तोड़ देते हो कवच उठा देते हो रहस्यों से पर्दा भर लेते हो मुट्ठी में अनमोल खजाना। हे कर्मवीर खनिक! तुम्हारी मेहनत पर टिका है विकास का सपना तुम्हीं अपने हाथों से गढ़ते हो उद्योग-धंधों की जीवन-रेखा तुम्हारे अतुलित श्रम-सीकर से चलती हैं आवागमन की साँसें तुम हो देश की बेशकीमती पूँजी मगर ध्यान रहे अधिकार है तुम्हें दोहन का मत करना शोषण तभी हो सकेगा पोषण यह आस भी तुमसे है क्योंकि हे खनिक! तुम्हीं हो धरती-पुत्र। डॉ अवधेश कुमार अवध मैक्स सीमेंट, मेघालय संपर्क - 8787573644

बर्तानिया तुम्हारा, हिंदोस्तां हमारा : पं० मेलारम वफ़ा

चित्र
बर्तानिया तुम्हारा, हिंदोस्तां हमारा :  पं० मेलारम वफ़ा पाकिस्तानी उर्दू अखबार जमींदार के सम्पादक मौलाना जफ़र अली खाँ ने एक बार किसी नौसिखिये शायर से आज़िज़ होकर उसे समझाते हुए कहा था- तोड़ता है शायरी की टांग क्यों ऐ बेहुनर, शेर कहने का सलीका सीख मेला राम से। सियालकोट (वर्तमान पाकिस्तान) में दीपोके गाँव में 26 जनवरी 1895 को पं० मेलाराम वफ़ा जी का जन्म हुआ। इनके पिता पं० भगत राम थे। परिवार गरीब था इसलिए इनकी प्राथमिक शिक्षा इनके ननिहाल सोबा सिंह गाँव में हुई थी। गाय-भैस चराते हुए इनका बचपन गुजरा। रहट की गद्दी पर बैठकर भी पुस्तकों को पढ़ने का मोह छोड़ नहीं पाते थे। 17 वर्ष की आयु में पहला शेर इन्होंने कहा था तथा इतने कुशाग्र थे कि आठवीं कक्षा में पढ़ते हुए अपने अध्यापक की गलतियों को सुधार देते थे। 10 वीं कक्षा पास करते ही इनकी शादी भी हो गई थी। उर्दू शायरी इनकी लत में शुमार थी। सन् 1922 में ये पं० राम नारायण अरमान दहलवी के शिष्य बन गए। प्राइवेट पढ़ाई करते हुए इन्होंने उच्च शिक्षा पूर्ण की तथा कुछ समय तक खालसा नेशनल कॉलेज लाहौर में उर्दू शिक्षक भी रहे। पं० मेलाराम वफ़ा जी न केवल उच्च...

भारतीय गणतन्त्र के सात दशक

चित्र
भारतीय गणतन्त्र के सात दशक परिवर्तन का जोश भरा था, कुर्बानी के तेवर में। उसने केवल कीमत देखी, मंगलसूत्री जेवर में।। हम खुशनसीब हैं कि इस वर्ष 26 जनवरी को 74वाँ गणतन्त्र दिवस मना रहे हैं। 15 अगस्त सन् 1947 को पायी हुई आजादी कानूनी रूप से इसी दिन पूर्णता को प्राप्त हुई थी। अपना राष्ट्रगान, अपनी परिसीमा, अपना राष्ट्रध्वज और अपनी सम्प्रभुता के साथ हमारा देश भारत वर्ष के नवीन रूप में आया था। हालाँकि इस खुशी में कश्मीर और सिक्किम जैसे कुछ सीमावर्ती या अधर में लटके राज्य कसक बनकर उभरे थे। देश को एक संविधान की जरूरत थी। संविधान इसलिए कि किसी भी स्थापित व्यवस्था को इसी के द्वारा सुचारु किया जाता है। संविधान को सामान्य अर्थों में अनुशासन कह सकते हैं।  संविधान अनुशासन है, यह कला सिखाता जीने की। घट में अमृत या कि जहर है, सोच समझकर पीने की।। 2वर्ष 11 माह 18 दिन के अथक और अनवरत प्रयास से हमारे विद्वत जनों ने डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में संविधान बना लिया था। लागू करने के लिए इतिहास में पलटकर उस दिवस की तलाश थी जब भारतीयों ने समवेत स्वर में पूर्ण स्वराज्य की माँग की थी। सन् 1929 में कांग्...

नजर के तीर,,( गजल)

चित्र
, नजर के तीर,,( गजल)  इन कजरारी आंखों ने, मुझपे ऐसा वार किया बच ना सका मैं उस कातिल से, जिसपे मैने इतवार किया प्यार की ज्योति जलाई मैंने, खुन से सिंचा यह पौधा,  जब जब पङी जरुरत उसको, सतंभन सौ बार किया रुह में मैरी सिमट गयी वो, उन यादों की वो घङियां   लिया पैरों की बन बैठी, जीना मेरा दुश्वार किया  निंदियाँ ना आती, जिया ना लागे, ऐ कातिल तेरे वो वादे,  मदन अकेला कहाँ गयी वो, जिससे तुने प्यार किया     मदन सुमित्रा सिंघल पत्रकार साहित्यकार शिलचर असम  मो.9435073653 ###############################      (2)  , बिजली कहाँ गिरोगी,,( गजल)  ऐ बिजली तुम कहाँ पे गिरोगी, बतादो हमें हम यहाँ रहते हैं घनघोर अँधेरा घटाटोप छायी, श्याम वर्ण सी अंधियारी रातें देती हिलोरें शर्द ऋतु सी, बताओ हमें हम क्यों सहते हैं खो जाती हो तुम किस दुनिया में, नजर ढुंढती है कहाँ खोई तुम होती तसल्ली दिदार तेरे, जब जी भर भर देख लेते हैं तङफाओ ना आओ आगोश में, अरमां हमारे पुरे करो तुम,  मदन सिंघल ऐ चमक चांदनी अब, आने को हम खुद कहते हैं। मदन सुमित्रा...

नेताजी से बड़ा नेताजी का नाम

चित्र
नेताजी से बड़ा नेताजी का नाम -डॉ अवधेश कुमार अवध दिया था गर्म खूं हमने कि तुम आजादी लाओगे। जुबां के हो धनी तुम, इसलिए वादा निभाओगे। मगर क्यों दी दरिंदों को आजादी की दुल्हन लाकर ? हुआ क्या माज़रा ऐसा, कहो तुम कब बताओगे? सदियों से मकड़जाल में फँसाये रखने की हुनर रखते थे। अमरबेल की तरह सहारे को ही चूसकर निष्पाण करने का महारत हासिल था। अपने स्वार्थ के लिए न्याय की आड़ में अन्याय को बढ़ावा देने में वे दक्ष थे। बाँट - बाँटकर किसी का भी बंटाधार करने की कला वंशानुगत थी। लड़ते कम थे और लड़ाते ज्यादा थे। अवसरवाद के प्रबल हिमायती थे वे, इसीलिए तो उनके साम्राज्य में सूर्य अस्त नहीं होता था। ये ब्रितानी ही थे जिनका आधिपत्य दुनिया के ऊपर था। सोच पाना भी असम्भव था कि इनके पंजों से सही सलामत मुक्ति मिल सकती है! दुनिया के तमाम देश छटपटा रहे थे आजादी के लिए। उनमें से भारत भी एक था जहाँ क्रान्ति की ज्वाला बार - बार वन की आग की तरह फैली और स्वयं की राख तले बुझ गई। नौ दशकों के लगातार कमोबेश शहादत के बावजूद भी आजादी से हम मरहूम थे.......दूर थे। शहीदे आजम भगत सिंह, चन्द्रशेखर, रामप्रसाद बिस्मिल, पंजाब केसरी लाला ला...

कैबिनेट मंत्री सर्बानन्द सोनोवाल को राष्ट्रवादी पुस्तक इनसे हैं हम भेंट की गई

चित्र
कैबिनेट मंत्री सर्बानन्द सोनोवाल को राष्ट्रवादी पुस्तक इनसे हैं हम भेंट की गई गुवाहाटी। पुस्तक मेले के 33वें संस्करण में असम के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और कैबिनेट मत्री पत्तन, नौवहन, जलयान एवं आयुष मत्रालय भारत सरकार माननीय सर्बानंद सोनोवाल को राष्ट्रवादी पुस्तक इनसे हैं हम भेंट की गई। पुस्तक की सह लेखिका अवनीत कौर दीपाली एवं सह लेखिका कुमुद शर्मा ने इनसे हैं हम भेंट करते हुए माननीय सोनोवाल जी के प्रति आभार व्यक्त किया।  दोनों सह लेखिकाओं ने बताया कि माननीय मंत्री जी ने अपना कीमती समय देते हुए इस पुस्तक के बारे विस्तृत जानकारी ली और इनसे हम की भूरि-भूरी प्रशंसा की। देश के लिए आवश्यक है कि अपने महान गुमनाम पूर्वजों को भी याद करते हुए प्रेरणा ले जिन्होंने अपने अभूतपूर्व बलिदान से देश को गढ़ा है। ध्वातव्य है कि इस पुस्तक में देश के 51 लेखक सम्मिलित हैं। यह जानकारी प्रधान  संपादक डॉ अवधेश कुमार अवध ने दी।