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प्रेम प्रक्रति की बहू मूल्यदेन हैं...

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   प्यार होना यह एक प्रकृति का अहसास है मानो लाइफ टर्निंग पॉइंट हैं | क्यों कि जीवन पूरा बदल जाता हैं किसीका अच्छा तो किसीका बुरा हाल होता जैसा ही हो जीवन बदल जाता हैं | ऐसा कहना ही उचित होगा साथ ही प्रकृति भी हमे मदद करती हैं | प्यार होने से पहले जिसेभी हम चाहते हैं उसके प्रति एक आकर्षण सा निर्माण होता हैं उसी के बारे में सोचना , उसी के ख्यालो में रहना कितना ही मन मे ठान लो कि मैं उसे याद नही करूँगा मगर याद आती हैं | यह जो आकर्षण हैं यह मन मे उठने वाले तरंग हैं और इसे प्रकृति अपने आप उत्तेजित करती हैं साथ ही सही समय पर यह अवस्था निर्माण होना यह भी प्रकृति का ही एक तोहफा कह सकते हैं | धीरे- धीरे यह आकर्षण बढ़ता रहता हैं तो उसे मिलना , बातें करना अच्छा लगता और यह आकर्षण ही बाद में प्यार में रूपांतरित होता यदी हम इस आकर्षण को प्यार में बदलना चाहतें हैं यह भाव प्रकृति अपने आप आपके अंदर भर देती हैं और सामने वाले को भी इस भाव से परिचित करती हैं | कहने का मतलब आकर्षण ही प्यार की प्रथम सीढ़ी हैं ऐसा कहना गलत नही हैं |             प्यार का इजहार करने से पूर...

हे पार्थ

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हे पार्थ हे पार्थ! उठो गांडीव गहो, अब कृष्ण न आने वाले हैं। यह युद्ध तुम्हारा अपना है, पांडव - उर में सौ छाले हैं।। जिस मोह जाल में हो निमग्न, गांडीव त्याग विलखाते हो। सौ - सौ मुखड़ों में छुपे हुए, दुश्मन  को देख न पाते हो।। इन छद्म वेशियों ने अक्सर, तुमपर हथियार निकाले हैं। हे पार्थ! उठो गांडीव गहो, अब कृष्ण न आने वाले हैं।। माता ने छला मौन रहकर, अग्रज अरिदल का भाग बना। जब रोक दिया अंधे को तब, फिर से क्योंकर कुरुराज बना।। इस क्रूर नियति ने बार बार, निज ओर सवाल उछाले हैं। हे पार्थ! उठो गांडीव गहो, अब कृष्ण न आने वाले हैं।। खांडववन मिला भगाने को, फिर द्यूत सभा का खेल चला। पांचाली का चिर खुला नहीं, कुरुवंश-काल का मेल चला।। भीष्म द्रोण कृपि कर्ण राजकुरु, खलदल के ही रखवाले हैं। हे पार्थ! उठो गांडीव गहो, अब कृष्ण न आने वाले हैं।। सारथी न होंगे अब केशव, खुद कृष्णार्जुन बन युद्ध करो। तज मोह बंध के छद्म जाल, अरि मार्ग त्वरित अवरुद्ध करो।। ये शकुनि दुशासन कंस वंश, दिल  के  कजरारे  काले हैं। हे पार्थ! उठो गांडीव गहो, अब कृष्ण न आने वाले हैं।। डॉ अवधेश कुमार अवध 8787...