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पहली पंक्ति वाले बेदाग अपराधी दंडित हों

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पहली पंक्ति वाले बेदाग अपराधी दंडित हों   - डॉ अवधेश कुमार अवध हम मानसिक रूप से आज भी गुलाम हैं और इस गुलामी को बनाये रखने में हमारी असफल शिक्षा व्यवस्था की भूमिका अहम है। वास्तविक रूप से शिक्षित हुए बिना ही कॉलेजों/  विश्वविद्यालयों से डिग्रियाँ मिल जाती हैं और येन केन प्रकारेण उच्च पद या उच्च सफलता को हथियाने में सफलता मिल जाती है। कम पढ़े लिखे, संघर्षमय दौड़ में शामिल न हो सकने वाले लोग या मनचाही सफलता से वंचित लोग तथाकथित सफल एवं उच्च पदस्थ लोगों को अपना आदर्श मान लेते हैं। यही से एक प्रछन्न अपराध जन्म लेता है। आइये, जरा विचार करें। किसी आशाराम, कामुक मौलवी, रेपिस्ट पादरी या रामरहीम के पास भक्तों की अगली पंक्ति में कौन होते हैं ? नि: संदेह हमारा इशारा कुछ डी एम, एस पी, न्यायाधीश, वैज्ञानिक, इंजीनियर, डॉक्टर, सी ए, प्रोफेसर, पूँजीपति एवं राजनेताओं की ओर होगा। बेचारी जनता जब बाबाओं के पास ऐसे महाभक्तों को देखती है तो खुद। अपने दिमाग से सोचना छोड़ देती है और आँखें बंद करके उनके पीछे लग जाती है क्योंकि अग्रिम पंक्ति की तथाकथित महान हस्तियों की अंधभक्ति उसके विवेक पर भारी पड़ती...

अभेद सार्वजनिक प्रकृति पूजा है छठ महापर्व

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अभेद सार्वजनिक प्रकृति पूजा है छठ महापर्व छठ पर्व का समय चल रहा है। हम सभी जानते हैं कि यह संयुक्त पर्व दीपावली के उपरान्त चतुर्थी से सप्तमी तक चलने वाला चार दिवसीय महापर्व है। छठी मइया के संदर्भ में कई मतों के बीच सबसे उपयुक्त मत यह है कि यह षष्ठी तिथि का अपभ्रंश होकर छठी हुआ है। अर्थात् साक्षात् देव भगवान भास्कर और छठी मइया की पूजा पर आधारित है यह पर्व। भगवान सूर्य और छठी मइया के संबंध के बारे में भाई-बहन का रिश्ता लगभग सर्वमान्य है। पौराणिक गाथाओं में भगवान कार्तिकेय की पत्नी के रूप में छठी मइया वर्णित हैं जिनको नव देवियों में छठे दिन पूजनीय माता कात्यायनी भी माना जाता है। भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री भी हैं छठी मइया। यह पर्व नवरात्रि भी भाँति एक साल में दो बार आता है। चैत्र शुक्लपक्ष और कार्तिक शुक्लपक्ष में उपरोक्त तिथियों को क्रमानुसार मनाया जाता है। रामायण काल में भगवान श्रीराम और माता सीता ने रावण बधोपरान्त छठ पर्व मनाया था। महाभारत काल में दानवीर कर्ण द्वारा भगवान सूर्य की उपासना का बहुत बार वर्णन है। पांचाली द्रौपदी द्वारा भी यह पर्व मनाया गया था। वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह पर...