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प्रेमचंद होने का मतलब

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प्रेमचंद होने का मतलब प्रेमचंद होने का मतलब स्वयं हर पात्रों को जीना होता है। प्रेमचंद होने का मतलब गुलामी में भी स्वाभिमान के साथ आजादी के भावरस को छीनकर छककर पीना होता है। प्रेमचंद होने का मतलब जनपद के शोषक डिप्टी कलक्टर के आगे गर्व से शोषित घर का कलक्टर होकर अड़ जाना  होता है। प्रेमचंद होने का मलतब जेल की परवाह किए बगैर शोषक के विरुद्ध क्रान्ति की मशाल लेकर आगे बढ़ना होता है। प्रेमचंद होने का मतलब आवश्यकतानुसार नाम और भाषा बदलकर भी पहचान न खोना होता है। प्रेमचंद होने का मतलब हर तरह की सामाजिक असमानता और सांस्कृतिक पिछड़ेपन को मुखर स्वर देना होता है। प्रेमचंद होने का मतलब कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी को आत्मसात करना होता है। प्रेमचंद होने का मतलब देश के प्रति भूख प्यास भूल जाना होता है। प्रेमचंद होने का मतलब गोदान हो जाना होता है। प्रेमचंद होने का मतलब कीचड़ में होने पर भी पंकज हो जाना भी होता है।  डॉ अवधेश कुमार अवध मेघालय 8787573644

कुशवाहा कान्त : एक जासूस की मौत - मिस्ट्री

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कुशवाहा कान्त : एक जासूस की मौत - मिस्ट्री           डॉ. अवधेश कुमार 'अवध' साहित्यिक उपज की दृष्टि से काशी प्राचीन काल से उत्तर प्रदेश की सर्वाधिक उर्वर भूमि है। इस भूमि पर भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के साहित्यिक मशाल को प्रसाद, प्रेमचंद और रामचन्द्र शुक्ल के साथ ही जलाए रखा एक चिर युवा साहित्यकार ने जिसका जन्म काशी के निकट मिर्जापुर में हुआ था किन्तु कर्मस्थली पावन काशी रही। अंग्रेजों की हुकूमत में जनमानस गुलामी के कारण पहले से ही सहमा हुआ था और ऊपर से दिसम्बर की हाड़ कपकपाने वाली शीतलहर का प्रकोप। 9 दिसम्बर सन् 1918 को मिर्जापुर के महुवरिया में बाबू केदारनाथ को एक ऐसे पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई जिसके बारे में कोई नहीं जानता था कि एक दिन यह बालक साहित्य को नई दिशा व नया आयाम देगा। जी हाँ, शिशु कुशवाहा कान्त के पाँव पालने में ही तरुणायी का भान कराने लगे थे। उस वक्त देवकी नन्दन खत्री के तिलस्मी उपन्यास का खुमार छाया हुआ था। जब ये नौवीं कक्षा में पढ़ रहे थे तो इन्होंने 'खून का प्यासा' जासूसी उपन्यास लिखा। जल्दी ही ये कुँवर कान्ता प्रसाद के नाम से ख्याति अर्जित करने लगे थे...